शब्द समर

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14.7.22

धर्म

ले लो ले लो
क्या बेचते हो भाई?
मैं धरम बेचता हूँ सरकार।
धरम?

हाँ जी धरम;
जिसे दीन, मज़हब रिलीजन कहते हैं,
जो तिलक, टोपी, क्रॉस
और पगड़ी में दिखाई देता है,|
जिसका प्रतीक,
गाय, सुअर या बकरा होता है,
जो केसरिया, हरा, नीला, लाल होता है,
जो मूँछों, दाढ़ियों से पहचाना जाता है।
अच्छा-अच्छा
जो
मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरिजाघरों में
रहता है,
जो अल्लाह, राम,
जीजस के नाम से पुकारा जाता है?

हाँ जी वही धरम।
चाहिए आपको?
चाहिए तो था,
पर बड़ा मँहगा होगा?
क्या क़ीमत लगाई इसकी?

हे हे हे!
अरे हज़ूर!
मँहगा?
वह भी धरम?
अजी छोड़िए।
इससे सस्ता तो कुछ हो ही नहीं सकता।
ये कोई डीज़ल, पेट्रोल, रसोईं गैस थोड़े न है,
न ही यह थाली की रोटी है,
यह तो धरम है जी,
आज के दौर का सबसे सस्ता माल।

यह महँगा हुआ करता था,
पिछले ज़माने में,
हमारे दादा-परदादा के।
अच्छा!
क्या क़ीमत लगाई?

ख़ून।
ख़ून?
जी हुज़ूर,
ख़ून, लहू, रक्त, ब्लड।
माफ़ करो,
मैं अभी हाल ही में रक्तदान कर आया हूँ;
तो तुम्हारा माल मैं नहीं ख़रीद पाऊँगा।

अरे सरकार!
कौन माँग रहा है आपसे आपका ख़ून?
तो फिर?
आप तो बस टोपी वाले को,
तिलक वाले से,
तिलक वाले को क्रॉस वाले से,
या ऐसे ही अलग-अलग
निशान वालों को,
इनके अपने-अपने धरम के
ख़तरे में होने का दे दीजिए हवाला
भिड़ा दीजिए,
इन्हें एक-दूसरे से,
फिर देखिएगा,
कैसे ख़ून बहाते हैं ये-
सड़कों पर, चौराहों पर, घरों में
या कहीं भी।
ये रक्तदान नहीं,
रक्त की नदियाँ बहा देंगे।
ये जान बचाने के लिए नदी नहीं,
जान लेने के लिए
लहू तैरकर लहू बहाएँगे।
आप तो बस अपने महलों से
देखते जाइएगा ये नज़ारा,
और पिलाते रहिएगा ख़ुराक़
भाषणों की दूर से ही।
ये वो चीज़ है मालिक,
जिसे आप ख़ुद मानें-न-मानें,
पर लोग आपकी दुहाई देकर
न केवल मानेंगे ही,
बल्कि दूसरों को मनवाने के लिए,
उनके घरों से
ख़ून-ही-ख़ून बहाएँगे।

अरे वाह!
कुछ बेमोल-सी जानें,
और थोड़े-से ख़ून के बदले,
इतनी ख़ूबसूरत चीज़?

लाओ भाई मुझे दे दो।

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