शब्द समर

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25.6.12

Elephant of the blind

My happiness is the Elephant of the blind
I have same felt as others say
never got luck to see.

I always climbed mountains of sorrow
Swim rivers of pain
Cross deserts of trouble.

Oh God! Do you have in any part of my life
A lake of happiness
A smile like coming spring
A rain of love?

16.6.12

मौत के मुहाने पर


आज फिर देखा किसी को
मौत के मुहाने पर
एक रोटी की तलाश में.
वो मेरा नहीं था पर था किसी का अपना ही.
गर्मी के बारह बजे के अंगारों पर
बेपैरहन देह
और
रेत की लपटों में बिने चप्पल
गिड़गिड़ा रहा था अपनी ताक़त के सामने
जो दे रही थी जवाब जलकर
विरहाग्नि में अपने प्रेमी अन्न के.
और अन्न को कर रखा है क़ैद उसके
कुरता-पाज़ामा और सफ़ेद टोपी के नीचे
काले बालों वाले पिता ने
किसी गुप्त जगह पर जो उसके गाँव से
है अनंत दूर.

पता नहीं
इसमें बेवफा कौन था,
उसकी ताक़त
या
अन्न
लेकिन दोनों के पाटों के बीच
पिस रहा था वो
जिससे केवल गलती यह हुई
कि
औलाद हुआ किसी मुफलिसी बाप का.
उसका खामोश क्रंदन दे रहा था सुनाई
अपलक मेरी रक्तीली आँखों को.
धूप में जले काले बदन की पीठ में
चिपकी भूखी अंतड़ियाँ
और निराजल गर्दन से सट चुके गले में
अटकी सांसे
खोज रही थीं राहें
उसे जिलाने को कुछ और पल उसे .
सांसे नहीं चाहती थीं 
सफ़ेद पोश लाल फीताशाहियों का पाप लेना अपने सर पर.
शायद खून भी निकलता उसकी देह से
पर
वो तो पहले ही चूस रखा था
बड़ी तोंद और खद्दरों ने अपने
सियारीदांतों से.
अब वह एक रोटी पाकर ही 
चाहता था मुक्ति  पूरी गरीबी से.
आँखों ने देखा
उस
तपते वीराने में रोटी तो नहीं आई
पर
यमराज ज़रूर आया
और वह पूर्ण मुक्त हो गया इस जन्म की

गरीबी से.