शब्द समर

विशेषाधिकार

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15.7.12

हे एकल!

हे
एकल!
हठ त्याग, स्वीकार विधि को
और समझ इस बात को
एकल ही आया तू वसुधा पर
एकल ही होगा प्रस्थान तेरा
कर दृढ़ निश्चय, मन कर एकल
कर त्याग मोह निकल बन बेकल
है सम्मानित तू जन-जन में
पर जीवन तेरा है एकल
तू चल एकल, तू चल एकल, तू चल एकल.

हे विचलित!

हे
विचलित!
तू हो स्थिर
समझ विधान विधाता का
वह सब कुछ नहीं है
प्राप्य हेतु तेरे
जिसके लिए होता है तू इच्छित.

हे
चंचल!
ले मान यह भी
सब कुछ नहीं है तेरा
जिस पर है तेरी गहरी आसक्ति.

हे
धूसर!
हो जा भिज्ञ
तू नहीं है पारस जो कर दे स्वर्ण
छू कर हर पाषाण को.

हे
बेकल!
तू व्यथित न हो
किसी के अस्वीकार से
सबका होता है निज जीवन
हस्तक्षेप न कर
तू उनकी निजता में
जैसे नहीं चाहता तू अपने में.

 

9.7.12

मैं ढूंढ रहा वो अपना प्यार


मैं ढूंढ रहा वो अपना प्यार -
जिसमें छाई बहार, जिसमें ख़ुशी का खुमार, जिसमें सारा संसारऽऽऽऽऽऽऽ
मैं ढूंढ रहा वो अपना प्यार.....

स्नेहमयी माता स्तन और पिता का चुम्बन
शयनगीत अमृतमय सुनकर पुलकित होता तन-मन
वो पालना हिंडोला, वो बांहों का झूला, वो ख़ुशी की पुकारऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ
मैं ढूंढ रहा वो अपना प्यार.....

ममतामय कर तेल लगाते और काजल का टीका
मन में माँ के हुई वेदना जब भी लाला छींका
वो पेट का बिछौना, माँ का गीले में सोना, वो प्यारी पुचकारऽऽऽऽऽऽऽऽऽ
मैं ढूंढ रहा वो अपना प्यार......

दिन के खटपट से फुर्सत हो जब भी घर में आते
शिशु की छोटी सी किलकारी पर कुर्बान हो जाते
भूल जाते थकान, उठाते कंदुक सामान, पिता देते दुलारऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ
मैं ढूंढ रहा वो अपना प्यार.........