शब्द समर

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22.11.13

ख़ामोश सुबह


सुबह बड़ी ख़ामोश है और रूहों में सरगोशी है
या क़यामत आने वाली है, या होना है फ़ना मुझको

शबनमी चमक शमशीरी लगती हैं,
परिंदों की टोली में कोई लगता है सरगना मुझको

तेरे क़दमों की आहट से अब दिल को बेचैनी है
चुभी सुई के दर्द सा लगता है कई गुना मुझको

धड़कने घुट रही हैं, अपनी ही चीख़ो में बार-बार
शायद तेरे ख़यालों ने कर दिया ज़िना मुझको

साजिशें तेरे जज़्बातों के दीदार हो रहे हैं अब
मुकम्मल प्यार के शायद तूने नहीं चुना मुझको

21.11.13

ये दाग़दार शहर

ये शहर,
ये दाग़दार शहर
ये सहर,
ये दाग़दार सहर,
शहर भी रुलाया, 
सहर भी रुलाया, 
पोछने अश्क़ यहाँ
कोई न आया, 
शहर भी पराया,
सहर भी पराया .

जैसी थी शब, 
वैसे थे सब, 
न शहर में बसेरा,
न सहर में बसेरा, 

शब भी अँधेरी
सहर भी अँधेरा
सब में अँधेरा, 
शहर में अँधेरा, 

न शब आज मेरी
न सब आज मेरे
न शहर आज मेरा,
न सहर आज मेरी.

जा रही हूँ
तुम्हारे लिए
ये शब छोड़कर,
ये सब छोड़कर, 
ये शहर छोड़कर,
ये सहर छोड़कर.

19.11.13

दुनिया की दीवारें

तेरे सामने मैं, मेरे सामने तू,
बातों के बीच दीवारें हैं.
तू मुझसे जीती, मैं तुझसे जीता
दोनों दुनिया से हारे हैं.


मैं इश्क़ के आँगन में हूँ खड़ा,
तू उल्फ़त के दरवाज़े पर,
तू देखे मुझे, मैं देखूँ तुझे,
नज़रों के बीच कटारें हैं.


तू बँधी है रस्मों-रिवाज़ों से,
बेड़ी मुझमें जज़्बातों की.
तू मुझमें बसी, मैं तुझमें बसा,
लोगों पड़ी दरारे हैं.


तू लड़ बैठी तुफ़ानों से,
मैं जूझ रहा हैवानों से,
तू मेरी मंज़िल, मैं तेरा मंज़िल,
रस्ते में पड़े अंगारे हैं

13.11.13

मुझे मौन कर दो

मेरे कार्यों में ताला लगा दो,
मेरी ज़ुबान पर ताला लगा दो,
मेरे विचारों पर ताला लगा दो,
मेरी भावनाओं पर ताला लगा दो.

मुझे कुछ करने मत दो,
मुझे कुछ बोलने मत दो,
मुझे सोचने मत दो,
मुझे महसूसने मत दो.

मुझे लंगड़ा बना दो,
मुझे गूंगा बना दो,
मुझे हीन कर दो,
मुझे शून्य कर दो.

आप ऐसा कर सकते हैं क्योंकि आपका ओहदा मुझसे बड़ा है.

4.11.13

किस अर्थ का होगा नया बरस

तब से लेकर आज तलक
बीते कितने नये बरस,
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.

कालचक्र का गतिमय काँटा
टिक-टिक चलता रहता है
आदि जहाँ से होता उसका
अन्त वहीं वह करता है.
नहीं एक क्षण स्थिर होता
नहीं फिजां का लेता रस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.

रवि से लेकर वार सनीचर
अगणित सात दिवस बीते
चैत्र से लेकर फाल्गुन तक
गणना में माह क्षण-क्षण रीते
मुल्ला, पंडित, पादरियों की
नहीं हुई कभी खाली मस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस

बुध सामान है होली मेरी
रवि सामान दिवाली है
यथा भौम के ईद मनाता
जस शनि क्रिसमस खाली है
जस मैं हर दिवस मनाता
त्यौहार मनाता बिलकुल तस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.

हो यदि शुभ रवि-सोम मंगल
बुध-गुरु शुक्र यथावत हों
शनि शान्ति रहे बिन क्लेश-कलह
अर्थ जब मन संयत हो.
लिए व्यथा यदि आया भी
किस अर्थ का होगा नया बरस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.