जलता है जो जलने दे,
बुझता जो बुझने दे
वो काँटे की सुई है,
चुभता है चुभने दे।
उसमें तपिश भरी है,
तो तपने दे उसे,
वो तीखी रोशनी है,
पड़ता है पड़ने दे।
आँखों से गिर पड़ा है जो,
उस पर तरस न खा,
वो शबनमी नमी है
गिरता है गिरने दे।
उसकी नज़र अगर,
तुझ पर है अब पड़ी,
तिज़ारती नज़र है वो
गड़ता है तो गड़ने दे।
वो मुस्कुराते आए हैं,
आगोश में तेरे,
खंजर मगर छुपाए हैं
छुपता है छुपने दे।
है इश्क़ की अगन,
उसमें धधक रही,
एक पल हौसला है
जगता है तो जगने दे।
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