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20.10.10

प्रगति पथ पर बढ़ता भारत

एक रात मैं सोया। रात करीब एक बजे आँख लगी तो मैंने अपने आपको एक चौड़ी-चमकदार सड़क पर पाया, पहले तो मैं अचंभित हुआ पर बाद में घर का पता ढूढने के लिए आगे बढ़ गया।

देखता हूँ कि रास्ते में दो महिलाएं गहनों से सधी-धजी हाथ में पूजा की थाली लिए चली जा रही हैं। अचानक बाइक सवार दो युवकों ने उनके गले में हाथ डाला और चेन गायब। औरतें चिल्ला रही हैं पर उनकी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है। इसके पहले वे मुझसे गुहार लगतीं मैं भी धीरे से वहां से सरक गया।

आगे बढ़ा किसी के घर से एक युवती की चीख़ सुनाई पड़ी समझते देर नहीं लगी की कोई दुश्शासन किसी द्रौपदी का चीरहरण कर रहा है। मैंने नज़र दौड़ाई की कोई पांडव या पितामह दीख जाएँ किन्तु कोई नहीं था, यहाँ तक कि लाज बचाने वाला कृष्ण भी नहीं. तो मैं भी नौ दो ग्यारह हो गया। घर बहुत दूर समझ आ रहा था।

बहरहाल आगे बढ़ा। किसी की बीवी, किसी का नौकर, किसी का मालिक, किसी का प्रेमी, तो कोई राह चलते अनेक हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं। एक जगह भीड़ लगी थी। मैं रुक गया। एक आदमी की लाश पड़ी थी। पूछने पर पता चला की दो गैंगों की मुठभेड़ में मारा गया है। किसने मारा ये बताने को कोई तैयार नहीं था। ऐसा न हो की मुझे सरकारी गवाह बनना पड़े मैं वहां से भी चम्पत हो गया।

फिर आगे बढ़ा तो देखता हूँ एक बड़ा सा मैदान है जिसमें अनगिनत लोग खड़े हैं.उन सबके हाथ में कागज़ की तख्तियां हैं जिनपर कुछ नारे लिखे हुए हैं. सभी लोग मिलकर खूब शोर मचा रहे हैं. आरक्षण ख़त्म करो. हमारी मांगें पूरी करो. हमें विशिष्ट दर्जा दो इत्यादि. सामने पुलिस वाले कुछ लोगों को पीट भी रहे हैं.

कुछ दूर ही चला होऊंगा की देखता हूँ एक विदेशी कहीं जाने के लिए रास्ता पूछ रहा है और बताने वाला उसे गुमराह कर रहा है। जब गुमराह करने का कारण जानना चाहा तो उस व्यक्ति ने बताया कि बाद में वह लौट कर उसी के पास आएगा जिससे उसे हो फायदा होगा.

और आगे बढ़ा क्योंकि घर तो जाना ही था। ये क्या एक कार हवा की गति से चली आ रही थी और सड़क के किनारे चल रहे दो-तीन आदमियों को अपने पहिये तले रौंदती चली जा रही थी। मैंने स्पीड बोर्ड कि तरफ देखा वहां गति सीमा ४०-५० कि मी प्रति घंटा। मैंने नज़र दौड़ाई स्ट्रीट पुलिस नदारद। या रही भी हो तो भी छुप गयी हो।

मेरे हाथ में रेडियो था उस पर समाचार आ रहा था कि दो अज्ञात लुटेरों ने एक बैंक से करोड़ों रूपए छीन लिए। अगली खबर थी कि दो गुटों के बीच खुनी संघर्ष के कारन इलाके में कर्फ्यू लग गया। उससे भी बड़ी खबर यह आ रही थी कि किसी स्थान पर कुछ चरमपंथियों ने ट्रेन में आग लगा दी जिससे कई निर्दोष मारे गये उसके बदले में उस राज्य के मुख्य मंत्री ने अपने गुंडों को आदेश दिया है कि तीन दिन के भीतर उन चरमपंथियों के निर्दोष घर वालों को या उन धर्मावलम्बियों की जितनी संख्या कम कर सको कर डालो. दोषियों के दोष के बदले निर्दोषों का खूब खून बहाया जा रहा है.

आगे समचार था कोई वाम संगठन है जो शासन के खिलाफ लड़ाई में निर्दोष, असहाय ग्रामीण जनों की बस्ती उजाड़ रहे हैं तथा उनकी निर्मम हत्या भी कर रहे हैं. अपना हक मांगने का यह खतरनाक तरीका सुकर तो मेरे हाथ-पाँव सुन्न हो गये.

थोड़ा आगे बढ़ा तो एक बड़ा सा भवन देखा. अन्दर गया तो वहां सफ़ेद कुर्तों वाले लोग बैठे हुए थे. वे एक-दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे थे. इसी दौरान किसी बात पर एक व्यक्ति नाराज़ हुआ और उसने सामने वाले को माँ की....बोल पड़ा. उसके सामने वाला भी कुछ कम नहीं दिखा उसने उसको बहन की....बोल दिया फिर क्या था पूरे भवन में लोग कुर्सियां उठा-उठा के एक-दूसरे को मरने का प्रयास कर रहे हैं. मैं तो दंग रहा गया. वहीँ कुछ कैमरे धारी लोग इस घटना को क़ैद कर रहे थे. उनसे मैंने पूछा यह कौन सी जगह है तो उन्होंने बताया यह राष्ट्र का सर्वोच्च भवन है और ये जो कुत्तों की तरह आपस में लड़ रहे हैं ये इस राष्ट्र के करता-धर्ता नेता हैं.

अंततः चलते-चलते मैं थक गया तो एक पुलिस स्टेशन पर गया। वहां बड़ी-बड़ी मूंछों वाले एक साहब को सारा किस्सा सुनाया तथा उनसे पूछा- मैं कहाँ हूँ, तथा ये माज़रा क्या था?

साहब ने बताया कि श्रीमान आप अभी विश्व के सबसे बड़े जनसँख्या वाले तथा सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत में हैं। आपने जो कुछ देखा वह लोकतंत्र का सदुपयोग था। विकासशील राष्ट्र विकसित होने के मार्ग पर है। भारत प्रगति पथ पर बढ़ रहा है। बस मेरी नींद ही उड़ गई ......

2 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय बंधुवर विद्यार्थी,,

    आपका ब्लॉग पढ़ा, अच्छा लगा, बढ़िया लिखते है आप, खासकर जीवन की तलाश में...
    कीप ईट अप..

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