जीवन झरना है,
और बूँदें इसकी साँसें।
जल होता रहता है प्रवाहित
शरीर में रक्त संचरण जैसे,
और पाषाण,
बाँधे रहते हैं
दोनों पाट,
हड्डियों के रूप में
रेत रूपी माँस-पेशियों के संजाल से।
बहाव आवश्यक है,
चाहे वह झरना हो,
या जीवन,
किन्तु
उससे भी अधिक
आवश्यक
करते रहना रक्षा
बूँदों की
ठीक वैसे ही,
जैसे बचाते हैं,
अपनी साँसें।
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