शब्द समर

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19.10.22

कवि की आयु

एक कवि सम्मलेन होने वाला था| दिग्गज-से-दिग्गज कविजन अवतरित हुए थे| कोई इतना श्रृंगारी कि कामदेव और रति वर्षों से उनके घर पर पानी भर रहे थे| किसी की कविताएँ वीर रस से इस प्रकार ओतप्रोत होतीं कि उनके हर सम्मलेन में वातवरण में वायु प्रताप बढ़ जाता, तम्बू स्वयं ही उखड़ने लगते| हास्यरस के कविवर की कविताओं में इतना जादू होता कि लोग अपने किसी प्रिय कि मृत्यु पर भी रोने के स्थान पर हँसते ही रहते| देशप्रेम वाले कवि की कविताओं का यूँ प्रभाव था कि लोग अपने पड़ोसी को ही पाकिस्तानी समझकर कूट दिया करते थे|

इन समस्त श्रेष्ठ-से-श्रेष्ठतम पुरुषार्थी महाकवियों में मध्य एक हिमवर्णी, मृगनयनी, गजगामिनी, कोकिलकंठी, पुष्पहृदयी, नवायु कवयित्री भी बैठी हुई थीं, जो कि समस्त श्रृंगारी, उत्साही जनों के नयनों का विश्रामस्थल थीं| कोई कहीं भी ताक कर जब थक जाता, बस उन्हें देखता, निहार लेता फिर निहारता ही रहता|

ऐसे ही में उसी हृदचौरी ने एक कविवर से विनोद-ही-विनोद में उनकी आयु पूछ लिया, क्योंकि वे बार-बार बातों-ही-बातों में उसे अपना पौरुष बखान रहे थे, साथ-ही-साथ अप्रत्यक्ष प्रेम निमन्त्रण भी प्रेषित करते जा रहे थे| आयु के बारे में सुनते ही, कविवर झेंप गए| महोदय ने अपने सम्पूर्ण श्वेतवर्णी केशों को पूर्ण श्यामल बना रखा था, यहाँ तक कि दाढ़ी और मूँछें भी सोलह वर्ष की बता रही थीं, क्योंकि वे उगने ही नहीं पाती थीं| अब किसी नवयौवना को अपनी मूल आयु कैसे बताएँ? उन्हें स्वयं से लज्जा और प्रकृति पर क्रोध आ रहा था| हालाँकि उन्होंने हँसी-हँसी में टाल दिया किन्तु अपनी आयु नहीं बताई|

तभी संचालक ने एक स्थानीय युवा कवि को भी कविता पढ़ने के लिए मंच पर आमन्त्रित किया| कवि बेचारा अभी नया-नया ही कवि बना था, अतः उसे कवियों के साथ वाले रहन-सहन और उसकी औपचारिकताओं की जानकारी नहीं थी| उस युवा ने दूर से तो लोगों का अभिवादन किया, किन्तु चरण वन्दन नहीं किया, और आकर कविवर के पड़ोस में बैठ गया| फिर क्या था कविवर के भीतर की बड़ी मछली जग गयी| उन्होंने तमतमाते हुए कहा, “आजकल के युवाओं को कोई शऊर, कोई शिष्टाचार, आचार-विचार, व्यवहार की समझ नहीं है, और चले आए कवि बनने| अपने से बड़ों के सामने कैसे प्रस्तुत हुआ जाता है, इनको पता ही नहीं है| ये क्या कविता पढ़ेंगे? पहले अपने गुरुओं का, अपने से बड़ों का सम्मान तो करना सीख लो, फिर कवि बनना| बड़े आए उभरते कवि बनने|” बेचारा नवयुवक कवि होने से पूर्व महाकवि के शब्दबाणों से ही शहीद हो गया|

तभी सहसा युवती ने धीरे से पुनः उनकी आयु पूछ लिया, अब तो बेचारे को काटो तो खून नहीं| बेचारे असमंजस में पड़ गए, “अब सम्मान बचाऊँ, या प्यार?”

यह कौन है...?

यह कौन है?
जिसने चूम लिया मुझे चुपके से?
वह भी बिना मेरी सहमति या अनुमति के?

लेकिन मुझे क्यों अच्छा लग रहा है,
जब यह करता जा रहा है
प्रवेश वस्त्रों का भीतर,
और भरता जा रहा है गर्माहट
मेरे बदन के पोर-पोर में?
और यह गर्मी,
आहा! जैसे इसकी ही प्रतीक्षा थी मेरी देह को।


क्यों सूख रहे हैं होंठ मेरे
?
और क्यों रोयों में है सरसराहट भरती जा रही?
कटकटाते दन्त-पंक्तियों पर
कौन बिखेर रहा है चमक अपनी?
कौन है,
जो हाथों से कराता जा रहा है
अजब-अजब क्रियाकलाप?
क्यों चुँधिया जा रही हैं आँखें मेरी,
जब ताकती हूँ उसकी ओर?|

ओह! तो यह सूरज है?
जो शरद की गुलाबी शीत में,
गुनगुनी-सी धूप से सेंक रहा है देह मेरी।
तब तो स्वागत है तुम्हारा दिनकर।
आओ,
और बने रहो चारों ओर हमारे,
देते हुए पूर्ण गर्माहट
और
बिखेरते रहो उजाला
समूची सृष्टि में।