शब्द समर

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1.12.19

निरर्थक


वह जो होना चाहता था,
उसे किसी ने होने नहीं दिया|

उसे जो होना चाहिए था,
उसे भी किसी ने होने नहीं दिया|

उसे जो नहीं होना था,
वह तो कभी वह हो ही नहीं सकता था|

वह जो हो चुका है,
उसे वह भी नहीं जानता 
कि वह क्या हुआ है|

फिर भी उस होने को,
वह जीता है 
अपने शरीर, 
और दूसरों के मन में
यही उसका आदि और यही अन्त है|

बीच में जो भी है,
वह तड़पने की कविता है,
जो न भी होता
तो भी वह होता..

24.9.19

अगर आप प्रेम में हैं


अगर आप प्रेम में हैं,
तो उसे खुलेआम ज़ाहिर करिए।
प्रेम को प्रकट करना, दिखावा नहीं होता
न ही होता है उसका प्रचारीकरण,
प्रेम प्राकट्य
प्रेम-प्रगाढ़ता के ताबूत की एक कील होता है।
अगर आप प्रेम में हैं
और आपका प्रेम नहीं है असहज,
तो अश्लीलता को छोड़कर,
सबकुछ दुनिया को दिखाइए।

हो सकता है,
दुनिया आपके प्रेम को न करे स्वीकार,
न करे तारीफ़,
तो क्या फ़र्क़ पड़ता है,
क्योंकि दुनिया अपने मतलब के अलावा
किसी की सगी नहीं होती।
इसलिए यदि आप प्रेम में हैं,
तो उग आइए हरी-हरी घास की तरह।

मरी आवाजें इंक़लाब नहीं ला सकतीं

थकी और मरी हुई आवाज़ें,
न जग सकती हैं,
न जगा सकती हैं।
न उठ सकती हैं,
न उठा सकती है।
न चल सकती हैं,
न चला सकती हैं।
न दौड़ सकती हैं,
न दौड़ा सकती हैं।

आवाज़ों में चाहिए ग़र इंक़लाब-
तो मुट्ठियों को भींच लो,
आँखों को खींच लो
उछाल दो जहान में
लहरा दो आसमान में,
कि एक साथ में बोल दो
हवा में स्वर को घोल दो।
कि घुलने दो स्वरों को तुम
उड़ने दो परों को तुम
अब ये पर रुके नहीं
अब ये सर झुके नहीं।

कि उड़ चलो वहाँ पे तुम
जहाँ हैं राजा-रानियाँ
बन रही हर रोज़ जहाँ
लूट की कहानियाँ।
लुट रहें हैं रोज़ जहाँ
सलमा और सुरेन्दर
लूटते ही जा रहे हैं
डेविड और विश्वम्भर।

इनकी ईंट पर तुम आज
पत्थरों को भौंक दो
इनकी भीत पर तुम आज
लाल रंग छौंक दो।
कि पोत दो कालिमा
इनके षड्यंत्र पर
और गोबरों का लेप दो
समस्त काले मन्त्र पर।

गला इनका रेत दो
बिना हथियार के
ज़ुबान इनकी चेप दो
बिना किसी वार के।
ख़त्म इनका खेल हो,
इनको सबको जेल हो
इनकी चाल चले नहीं
इनकी दाल गले नहीं

आदमी को आदमी हक़ तुम्हें दिलाना है
इसीलिए ज़ुबां पे अपने इंक़लाब लाना है।
जाग आओ आज तुम
उठाओ आवाज़ भी
हो नहीं थके-मरे
कर दो आग़ाज़ भी।

क्योंकि
थकी और मरी हुई आवाज़ें,
न जग सकती हैं,
न जगा सकती हैं।
न उठ सकती हैं,
न उठा सकती है।
न चल सकती हैं,
न चला सकती हैं।
न दौड़ सकती हैं,
न दौड़ा सकती हैं।

23.9.19

दमदम ज़िन्दगी


दमदम भागती रहती है तू
ऐ ज़िन्दगी!

दम भर तो ठहर जा,
ज़रा तो दम लेने दे|

मेरा तो दम घुटता जा रहा है
तेरे हरदम भागते रहने से|

तू दम रही है मुझे,
और बेदम होता जा रहा हूँ मैं|

लगता है दम निकाल कर ही
दम लेगी तू|

24.8.19

तारीख़ों की दस्तक


मैं देता रहूँगा दस्तक तुम्हारी यादों के दरवाज़ों पर,
जब कभी तुम मशगुल हो जाओगे
ज़िन्दगी के कमरे अपनी मशरूफ़ियत के साथ|

तुम झट से उठ बैठोगे ,
बनाओगे मन कि "खोल दूँ दरवाज़ा,
भर लूँ आगोश में तारीख़ों को,"
लेकिन हक़ीक़त की बेड़ियाँ तुम्हें जकड़ लेंगी|
तुम फिर
घुल जाओगे
कमरे की सीलन में|

और मैं,
थोड़ी और देर थपथपा के किवाड़,
लौट जाऊँगा कुछ पलों के लिए|
तुम आँखों में बेबसी का पानी रोके,
फिर मशरूफ़ हो जाओगे,
मेरे वापस आने तक|