शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
चोरी पाए जाने पर दंडात्मक कारवाई की जाएगी|
अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

22.11.14

श्रद्धांजलि डूबते हुए भारत को...

यह कविता देश वर्ष पूर्व बिहार के एक विद्यालय में मध्यान्ह भोजन से हुए 50 से भी अधिक बच्चों की मौत के कारण आई भावनाओं से लिखी गई है|
आज शमशान मे बच्चों का जमघट है बहुत!!
शायद किसी स्कूल मे फिर खाना बँटा है!!

अब सुलाने के लिए कोई अम्मा नहीं होगी परेशान,
स्कूल ने उन्हें हमेशा के लिए सुला दिया है.

मैदान आज भी बच्चों से भरा पड़ा हैं,
पर आज किलकारी नहीं कोहराम मचा है.

मैदान में आग की लपटें और घर में चीत्कार हैं,
बाबू-बाबू चिल्लाती अम्मा की गुहार है.

अब कभी न जीम पाएगा वह अम्मा के हाथ से,
किसी ने ऐसा खिलाया कि कभी खाने लायक न छोड़ा.

इन लपटों में जल रहे हैं कइयों हज़ार सपने,
खाने में प्रलय आई बहा ले गई अपने.


श्रद्धांजलि डूबते हुए भारत को...

21.11.14

अमिट प्रेम














प्रेम नहीं होता आश्रित आयु पर,
वह होता है एक बार,
निभाता है साथ
तब तक भी जब तक
साथ होता है जीवन साथी
या बन जाय काल का ग्रास ही|
उसे नहीं होती अपेक्षा
जीवन की
न ही होता है भय
मृत्यु का|
प्रेम के लिए नहीं चाहिए धन,
न ही उसे है विश्वास
लेन-देन या व्यापार पर,
न ही कामना होती है
जीवन-मरण या मोक्ष की|
प्रेम को तो बस
एक दृष्टि ही चाहिए
जो हो अथाह,
अनंत समुद्र गहराई लिए,
उसे चाहिए सशक्त विश्वास
हिमालय की ऊँचाई की तरह|
थके-हारे जीवन पथ पर
जब कोई नहीं होता है
आस-पास,
जब दुत्कार देता है अपना ही रक्त
तब प्रेम माँगता है
एक कन्धा
जिसमे खो जाती हैं
सारी पीड़ा, सारी व्यथा,
मिलता है एक असीम आनंद,
लगता है सार्थक
जीवित होना|
लगता है पूर्ण जीवन
तब भी जब ज़र्ज़र
होता जाता है शरीर
और होने लगती हैं तैयारियाँ
भस्म करने को श्मशान में
जब जल जाती है सारी देह
गल जाती हैं हड्डियाँ,
किन्तु साथ रह जाता है
केवल और केवल

प्रेम|

10.11.14

दो सखियाँ

वर्तमान में भी अतीत की सुनहरी यादें हैं, दो सखियाँ. 
होते ही आँखें चार खुशियों की बरसातें हैं, दो सखियाँ. 
अपने मलिन चेहरे पर भी 
प्रसन्नता के भाव बिखेरने की प्रतिस्पर्धा होती हैं, दो सखियाँ. 
घर की गलियों से लेकर 
विद्यालय की एक-एक ईंट और दीवारों की यादें होती हैं, दो सखियाँ.
हो जाती है सुखी कुछ पल के लिए,
जैसे कि पीड़ा नाम की चीज़ कभी इन्हें छू ही न गई हो.
एक-एक पल को पूरी तरह से जी लेने की चाहत होती हैं, दो सखियाँ.
विविध भारती की तरह होती हैं वाचाल यंत्र
स्वयं के मनोरंजन का अथाह भण्डार हैं, दो सखियाँ.
बचपन से लेकर अभी तक के जीवन का
सिमटा हुआ इतिहास हैं, दो सखियाँ.
शताब्दियों पूर्व रहा होगा कोई राजा कभी
किन्तु वर्तमान में दुनिया के सबसे सुन्दर
अपने-अपने राजकुमार की सपना हैं, दो सखियाँ.
भूल कर अपना अथाह दुःख-सागर
इस पल को अपने धमनियों में सराबोर कर लेना चाहती हैं, दो सखियाँ.

सब कुछ तो अच्छा ही था
पर ये क्या
मनाये न माने,
थामे न थमे
ऐसे एक समन्दर का नाम हैं, दो सखियाँ.
पापी समय की निर्दयता
और कठोरता की मार हैं दो सखियाँ.
जिस पल मिलती हैं
उस समय की सबसे बड़ी सहेली हैं, दो सखियाँ.
लेकिन अंतिम घड़ी वही समय
दुष्ट और राक्षस बन जाता है
देखो तो कितनी बड़ी पहेली हैं, दो सखियाँ.