उनसे जब हमको इश्क़ हुआ,
ख़ामोशी में हम खोए रहे।
बे-तार्रुफ़ होते वक़्त खुदाया,
अश्क़ों से जीस्त भिगोए रहे।
यूँ रौनक-ए-महफ़िल हमीं रहे,
पर तन्हाई में हम रोए रहे।
सालों-दर-साल बेहोशी थी,
अपनी ही बाँहों में सोए रहे।
हसरत-ए-दिल कुछ और नहीं,
चिराग़-ए-उम्मीद सँजोए रहे।
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