शब्द समर

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31.12.13

लाचार कुत्ते की जिंदगी


लाचार कुत्ते की ज़िन्दगी
आज सुबह घने कोहरे के बीच मैं अपने स्कूटी से चला आ रहा था। कोहरे के बारे में क्या बयान करूँ बस ये समझ लीजिये कि पाँच मीटर की दूरी पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। अचानक मेरी गाड़ी के नीचे कोई दब जाने की उम्मीद से कूद पड़ा। मेरी गाड़ी उससे ये टकराई, टकराई, टकराई, इस स्थिति में ही थी कि मैंने ब्रेक लगा दिया। सामने देखा तो एक कुत्ता था। ठण्ड से कुड़कुड़ाता हुआ एक दम मरियल सा दीख रहा था। देखने से लग रहा था शायद इसका कोई मालिक नहीं है, बस यूँ ही आवारा है। होटलों और बड़े भोजों के दोने-पत्ते चाटने वाला। गरीब, बेबस, लाचार। हड्डियाँ तो आसानी से गिनी जा सकती थीं।
मेरे ब्रेक लगाने के बाद मैंने हॉर्न बजाया, यह कहने के लिए कि “हट जाओ मुझे जाने दो” किन्तु वह नहीं हटा। मैं खड़ा हो गया। आदतन मैंने उसे प्रणाम किया और पूछा, "क्यों जानबूझ कर मेरी गाड़ी के नीचे आते हो?
उसके चेहरे और आँखों ने मुझे बताया कि मैं अपनी निर्धनता से तंग आ गया हूँ। जिस किसी के दरवाज़े पर जाता हूँ वही दुत्कार देता है। अब कहीं भी सुकून से रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं मिलता। होटलों पर चाय की पत्तियाँ खा-खा कर मेरी यह दशा हो गई है। रोटी की बजाय मुझे लोगों की गालियाँ, उनकी मार और दुत्कार मिल रही हैं। मैं रात में किसी के घर के सामने बैठ कर भौंकता हूँ कि शायद इस घर के मालिक को मुझ पर तरस आ जाए कि मैंने रात भर उसके घर की रखवाली के लिए अपनी नींद गवाई है, रात भर भौंका है, तो एक टुकड़ा रोटी नसीब ही हो जाय, लेकिन ठीक उसके उल्टा होता है। उस घर का मालिक मुझे जूते से मार कर यह कहकर भगा देता है कि हरामी ने मुझे रात भर भौंक कर सोने नहीं दिया। हर जगह मेरा हवन करते हाथ जल जाता है। बाकी मौसम तो किसी तरह बीत गये लेकिन यह हड्डियों को कँपा देने वाली ठण्ड बर्दाश्त नहीं हो रही है। किसी के घर आश्रय माँगने जाऊँगा तो मार खाऊँगा। ठण्ड में थोड़ी भी चोट लगती है तो बहुत दर्द होता है। मेरा अपना भी स्वाभिमान है। कब तक किसी और की दुत्कार सहन करूँ?
मैं उसके सामने निःशब्द था। क्या बोलता? क्या उसे दिलाशा देता? क्या समझाता? मेरी दार्शनिक-सैद्धान्तिक  बातों से न उसका दर्द मिटता, न उसकी ठण्ड जाती; या हो सकता है एक-दो दिन उसमें जोश भर जाता, लेकिन दो-चार दिनों बाद तो उसकी वही हालत होने वाली है। फिर वह इसी तरह किसी वाहन के नीचे कूदेगा, या ट्रेन के नीचे सो जाएगा। मैंने उसे एक सुझाव दिया। मेरे सुझाव में निर्दयता थी। मैंने उसे कहा देखो जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है। उसे न मेरा भाषण बदल सकता है न डॉक्टर की दवा। मैं भी एक दिन मर जाऊँगा, तुम भी मरने ही आये हो। अभी मरे नहीं तो मर ही जाओगे, लेकिन मुझे ऐसा लगता है, “मुझे और तुम्हें अभी और जीना है, इसलिए तो मेरी गाड़ी तुमसे नहीं टकराई।“ अन्यथा तुमसे टकराकर दोनों मर जाते। तो जब बच ही गये हैं, तो क्यों न कुछ और सार्थक कार्य कर लिया जाय।
वैसे मैं तुम्हें मरने से नहीं रोकूँगा, क्योंकि मैं स्वयं इतना सक्षम नहीं कि तुम्हारा पालन-पोषण कर सकूँ, और किसी के पास ज़िल्लतें सहने के लिए भेज नहीं सकता।
तुम्हारे पास दो रस्ते हैं। या तो मिले हुए इस जीवनदान का फ़ायदा उठाकर तुम सशक्त बनो, या हारकर मर ही जाओ। अगर फ़ायदा उठाओगे, तो हो सकता है तुम भी बड़े मालिकों के कुत्तों की तरह ब्रेड-बटर खाने को पाओगे। ठण्ड से बचने के लिए विशेष इन्तज़ामात होंगे। अपना खाना-पीना छोड़ मालिक तुम्हें हगाने-मुताने भी ले जाएगा। अपने बच्चे और तुममे एक पैसे का फ़र्क नहीं आने देगा। अपने बच्चे के लिए तो आया रख लेते हैं, लेकिन अपना शौक पूरा करने के लिए तुम्हारी टट्टी-पेशाब भी ख़ुद ही साफ़ करगा। यहाँ तक कि ठण्ड से बचाने के लिए तुम्हें दो-चार घूँट ब्रैंडी भी पिलाएगा। यहाँ तक कैसे पहुँचना है, यह मुझे भी नहीं पता क्योंकि मेरी भी स्थिति तुमसे थोड़ी-सी अच्छी है, बाकी मैं भी तुम्हारे ही जैसा हूँ। इसीलिए तो तुम्हें प्रणाम किया था। तो इसका मार्ग तुम्हें ही तलाश करना होगा।
यदि दूसरा वाला रास्ता अपनाना चाहते हो, अर्थात् मरना चाहते हो, तो भाई एक सुझाव दूँगा कि किसी दो पहिया वाहन से मत टकराना। इन कमबख्तों में इतनी जान नहीं होती कि वो किसी और की जान ले सकें। ये दो पहिया वाहन बस ख़ुद की ज़िन्दगी जीती हैं। उनकी इतनी औक़ात ही नहीं कि वो किसी को मार सकें। मुझे ही देखो तुम्हें सामने देखते ही मैंने ब्रेक लगा दिया।
अगर तुम्हें मरना है, तो कार के नीचे कूदो, बस के नीचे कूदो, ट्रक के नीचे कूदो। ये पैसे वाले लोग होते हैं, या पैसे वालों की गाड़ियाँ होती हैं। दूसरों की जान ले लेना, तो इनका बाँयें हाथ का खेल है। मुम्बई के एक बड़े अभिनेता की ख़बर तो पढ़ी ही होगी, अपनी अमीरी और शराब के नशे में चूर, उसने फूटपाथ पर सोये लोगों को ही कुचलकर मार डाला। इनके नीचे दबोगे न, तो एक बार में ही प्राण निकल जायेंगे। तड़पना भी नहीं पड़ेगा। दो पहिया के नीचे कूदोगे, तो तुम तो नहीं मरोगे, हाँ मैं मर सकता हूँ। अगर मैं नहीं मरा तो लोग तुम्हारी भावनाओं को तो समझेंगे नहीं कि तुम ही मरना चाहते थे, इसलिए कूद गये, बल्कि वे हमें इसलिए पीटना शुरू कर देंगे कि हम अंधों की तरह गाड़ी चलाते हैं। दूसरे पुलिस केस होगा। तुम आत्महत्या करना कहते हो यदि यह पुलिस को पता चला तो तुम्हारे ऊपर भी केस होगा। चोट लगेगी डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा। इसका मतलब समझते हो। पुलिस और डॉक्टर के पास पहुँचने के बाद जितना तुमने और मैंने ज़िन्दगी भर कमाया नहीं होगा न वो इनके केस के निपटारे और मरहम पट्टी में ख़त्म हो जाएगा। दोनों की ज़िन्दगी मौत से बदतर हो जायेगी। तो भाई मरने की इच्छा तुम्हारी और ज़िन्दगी नर्क बनेगी हमारी। ऐसा ज़ुल्म हम न करो।
तुम्हारा मरना या जीना तुम्हारे ऊपर छोड़ता हूँ, मुझे जाने दो। कितनी भी ठण्ड है, पर नौकरी पर जाना है। और उस कुत्ते को उसी हालत में छोड़ मैं गाड़ी का सेल्फ स्टार्ट दबाया और कोहरे का आनन्द लेते हुए गन्तव्य की ओर रवाना हो गया। कुत्ते ने क्या किया यह तो शायद यह तो पता न चले, क्योंकि अखबार और न्यूज़ चैनल तो आज़म खान के भैंस और प्रधानमंत्री की भतीजी की चीज़ें खोने की ख़बरें प्रकाशित करते हैं, आवारा कुत्तों की नहीं। वरना इस ठण्ड में कितने लोग ठिठुर कर मर रहे हैं...

25.12.13

जीवन के आयाम

ज़िंदगी तो ज़िंदगी है 'विद्यार्थी'
ख़ुशी की हो 
या ग़म की,
सूखे की हो
या नम की,
अधिक की हो 
या कम की,
सबसे एक ही शब्द निकलता है 
!चाह!

मज़ा तो मज़ा होता है 'विद्यार्थी'
दिन का हो 
या शाम का,
पानी का हो
या जाम का,
फ़ुर्सत का हो 
या काम का,
सबसे एक ही शब्द निकलता है 
!वाह!

दर्द तो दर्द होता है 'विद्यार्थी'
अपनों का हो
या परायों का,
आग का हो 
या हवाओं का,
बहारों का हो 
या खिज़ाओं का,
सबसे एक ही शब्द निकलता है
!आह!

15.12.13

HE की जननी SHE

अंग्रेज़ी में दो शब्द हैं. एक SHE उसी के तथा उसी के बारबर HE और हिंदी में एक शब्द है 'वह'.  तीनों का तात्पर्य किसी तीसरे व्यक्ति की ओर इंगित करना होता है. SHE जो कि स्त्री की ओर इंगित करता है और HE पुरुष की ओर किन्तु 'वह' उभयलिंगी है. SHE और HE की भांति 'वह' कोई लैंगिक विभेद उत्पन्न नहीं करता. पश्चात् इसके भी हिंदी भाषी राज्यों में पुरुष प्रधान और स्त्री दलित समाज है. यह समस्या तो देश में है ही और धीरे-धीरे इससे मुक्ति भी मिल रही है. मैं अभी बात करने जा रहा हूँ SHE और HE की. इसने भी प्रत्येक भारतीय बोलचाल की भाषा में अपनी गहरी घुसपैठ कर ली है.

एक दिन की बात है हम एक समीक्षात्मक कार्य में बैठे थे. हमारे कुछ साथियों ने एक बहुत ही सुन्दर प्ररचना (Design) का निर्माण किया था जो कि उनके सहूलियत वाली भाषा अंग्रेज़ी में थी. अंग्रेज़ी इसलिए क्योंकि उनके अनुसार हिंदी उन्हें कठिन लगती है, बचपन से अंग्रेज़ी ही उनकी सहेली रही है. अपना दुःख-दर्द व्यक्ति सहेलियों से ही तो कहता है और भाषा भी एक शेली से कम नीं होती अतः वे भी अपना सारा लेखन अंग्रेज़ी में करते हैं.

बात आगे बढ़ता हूँ. हुआ यह कि उस प्ररचना में SHE शब्द का और इसी के कर्मवाचक शब्द HER का उपयोग प्रत्येक स्थान पर किया गया था जबकि यह जिन लोगों के लिए बनाया गया है उसमें HE या इसका कर्मवाचक HIS भी बराबर का भागीदार है. मैंने SHE और HER के साथ ही HE और HIS को बराबर के अस्तित्व में लाने का सुझाव दिया.

मेरे इस सुझाव से एक साथी ने बहुत ही सार्थक तर्क दिया कि जब यह समाज मात्र HE को ही हर स्थान पर आगे रखता था और SHE का कोई अस्तित्व ही नहीं आने देता था तब तुमने ऊँगली क्यों नहीं उठायी या तब तुम्हें आपत्ति क्यों नहीं हुई?  उस समय तो मैं नहीं बोल पाया था किन्तु अभी यह कह रहा हूँ कि मैं SHE के साथ ही कई HE का भी बराबर नेतृत्व करता हूँ जिसमें कई HE लोगों को अपने होने पर शंका होती है या SHE को प्रधान देख कर उन्हें कष्ट होता है. (यहाँ यह बात भी कही जा सकती है कि यदि मुझे आपत्ति नहीं और मैं ऐसे लोगों का नेतृत्व करता हूँ तो उनसे क्यों नहीं करवा सकता? ऐसी परिस्थिति में मैं मात्र यही कह सकता हूँ कि अपनी मान्यताएं मैं किसी पर थोपने का अधिकारी नहीं हूँ. हाँ उन्हें प्रेरित अवश्य कर सकता हूँ. मानसिक परिवर्तन में समय लगता है तो हो सकता है कि एक दिन वे भी इस मान्यता को स्वीकार कर लें.)

मेरे साथी के इस तर्क से कई लोगों को मुझ पर हंसने का अवसर भी मिला. संभवतः मेरा यह सुझाव उन्हें किसी हास्य की उपज समझ में आई. कई लोगों को तो यह भी लगा कि कोई हास्य कवि काव्यपाठ कर रहा है कुछ लोगों को हास्य अभिनेता तो कईयों को मैं विदूषक लगा. लोगों को हंसी आई और हंसे भी. दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले अपनी औक़ात में आ गये. उनकी औक़ात यही है कि वे किसी का सम्मान नहीं करते, अगर सामने वाले को नीचा दिखाने का अवसर मिल जाय तो.

मैंने जिन्हें यह सुझाव दिया उन्होंने इसे पूरी विनम्रता से स्वीकार किया और इसे अमल में लाने का विश्वास भी दिलाया. कोयल की यह मधुरता कौवों के कांय-कांय में दब के रह गई. फिर एक ओर से आवाज़ आई कि HE भी SHE से ही उत्पन्न होता है. मैं कोई सस्वती पुत्र बीरबल तो हूँ नहीं कि किसी प्रश्न को त्वरित उत्तरित कर सकूं किन्तु इस शब्द ने मुझे बल दिया. क्योंकि जब यह वाक्य आया तब सभी ओर मात्र अट्टहास चल रहे थे. कोई किसी को सुनने के लिए तैयार ही नहीं था. जिसके मुख से यह ध्वनि आई थी वह भी SHE ही थीं और यह ध्वनि एकदम दबी-कुचली लग रही थी. मेरे कानों में पड़ते ही मुझे बल मिला और मैं ज़ोर से चिल्लाते हुए बोला "सृष्टि का यह अद्दभुत संयोजन है कि प्रत्येक HE की उत्पत्ति SHE से ही होता है S+HE.  
फिर क्या था हर जगह बीच में ताली बजाने वाले तालिबाज़ों ने मेरी बात पर भी ताली बजा दी.