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11.9.14

*संतुलित भोजन*

आज एक शिक्षक से बात हो रही थी|  उस घटना को मैंने एक कहानी का रूप देने के प्रयास किया है| इसमें नाम  तो काल्पनिक है किन्तु यह पूरे भारत वर्ष की एक अकाट्य सच्चाई है
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कक्षा में विज्ञान के शिक्षक पढ़ा रहे हैं "बच्चों आपको संतुलित भोजन करना चाहिए| संतुलित भोजन? उसी कक्षा में बैठा राजू सोच रहा है| ये संतुलित भोजन क्या होता है? वह उक्त अध्यापक से पूछना चाहता है परन्तु डर के मारे नहीं पूछ पाता किन्तु छुट्टी के पश्चात् भी उसके मन में एक ही प्रश्न बार-बार कौंधता रहता है "ये संतुलित भोजन क्या होता है?"
राजू पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाला दस-ग्यारह वर्ष का बच्चा है जिसके स्वास्थ्य के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि यदि उसका कपड़ा उतार दें तो पसलियों को सरलता से गिना जा सकता है| गणित के अध्यापक गिनती सिखाने के लिए माँस से लिपटी हड्डियों का प्रयोग कर सकते हैं| वज़न इतना कि अगर वह खुले मैदान में सो जाए तो चील कौआ भी उठा ले जा सकते हैं और पंचतंत्र की 'कंटकम कंटकेनैव' कहानी चरितार्थ हो सकती है|

वह घर पहुँचता है| पहुँचते ही माँ से पूछता है, "माँ! यो संतुलित भोजन के होवे है (माँ! ये संतुलित भोजन क्या होता है)? माँ अनपढ़ वह क्या उत्तर देती बोली म्हाने के बेरो? होतो होग्गो कुछ (मुझे क्या पता? होता होगा कुछ|) बच्चे के मन में यह प्रश्न ज्वार-भाँटे की भाँति उछाल मरने लगा| सांझ के समय रोटी को पानी में सानते हुए उसने अपने पिता से पूछा, बापू यो संतुलित भोजन किण बोल्यां हाँ (बापू ये संतुलित भोजन किसे बोलते हैं?) के बेरो बेटा अपां तो रोजिना ही यो लूण-रोटी खावाँ हां| कदं-कदं दाळ-दूल भी मिल ज्यास्सी| जणा तू काल अपने गुरूजी ने जाके बूझ ले (क्या पता बेटा| हम तो रोज यही नमक-रोटी खाते हैं| कभी-कभी दाल- भी मिल जाती है| तू कल अपने शिक्षक से पूछ लेना|)

राजू कुछ नहीं बोलता| चुपचाप खा कर सोने चला जाता है किन्तु उसका मन तो बार-बार एक ही प्रश्न से जूझ रहा होता है, ये संतुलित आहार क्या होता है? कैसा होता होगा? कैसा दीखता होगा? कौन लोग खाते होंगे? क्या मुझे भी कभी मिलेगा? क्या पता जो मैं रोज खाता हूँ वही संतुलित भोजन हो? उहूँ होगा कुछ| पर नींद उसकी बैरी हो गई| रात भर आँखों से बस एक ही बात के लिए उसे परेशान किया वह थी संतुलित भोजन|

दूसरे दिन उसने ठान लिया कुछ भी हो मैं तो गुरूजी से पूछूँगा ही| क्या करेंगे मारेंगे? मुर्गा बनाएंगे? ठीक है जो करना हो कर लेंगे लेकिन मैं पूछूंगा| कक्षा में पहुँचते ही वह पूछ बैठा गुरूजी संतुलित भोजन किसे कहते हैं? गुरूजी ने उसकी ओर देखा| बाकी बच्चे भी उसके अनपेक्षित प्रश्न से हँसने लगे| ये पाठ तो कल ही समाप्त हो गया फिर भी यह वही प्रश्न पूछ रहा है| अध्यापक बताने लगे- नकम-रोटी,  पानी में भीगी हुई बाजरे की रोटी, चकौड़े का साग और सवां-कोदो की रोटी यही सब संतुलित भोजन होते हैं| फिर गुरूजी ने उससे  पूछा-तुम तो रोज़ यही खाते हो न राजू? उसने सीना तान कर जवाब दिया- हाँ गुरूजी| तब उन सभी हँसने वालों की आवाज़ बंद हो गई| राजू कक्षा में उपस्थित सभी बच्चों की ओर वह सगर्व देख रहा था तभी उसके कानों में ध्वनि जाने लगी, बेटा! सुबह नाश्ते में पोहा, ब्रेड, मक्खन, टोस्ट, पराठे, फल, फलों का रस| दोपहर के समय भात-दाल, रोटी, सब्ज़ी, घी, दही| रात में रोटी, हरी सब्जियाँ और सोते समय दूध जब ये सब मिलाकर भोजन में लिया जाता है तो उस भोजन को संतुलित भोजन कहते हैं| जो लोग पसंद करते हैं उनके लिए अंडा, मांस या मछली इत्यादि भी संतुलित भोजन का ही प्रकार है|
राजू के कानों में ये सारे शब्द पड़ रहे थे और अचानक उसके मुँह से एक और प्रश्न निकल पड़ता है "गुरूजी क्या इतना सब कुछ एक बार में ही किसी को खाने के लिए मिल सकता है?|

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