शब्द समर

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19.8.22

जय श्रीकृष्ण हरे!

जय श्रीकृष्ण हरे
जय जय श्री कृष्ण हरे
भक्तन के दुःख सदा प्रभु जी
भक्तन के दुःख सदा प्रभु जी
बस एक पल में टरे
जय श्री कृष्ण हरे
जय जय श्री कृष्ण हरे

तेरी शरण में जो भी आया गिरिधर
तेरी शरण में जो भी आया गिरिधर
वो भव-सिन्धु तरे
वो भव-सिन्धु तरे
जय श्री कृष्ण हरे
जय जय श्री कृष्ण हरे

धर्मन की रक्षा की खातिर
धर्मन की रक्षा की खातिर
रूप विभिन्न धरे
रूप विभिन्न धरे
जय श्री कृष्ण हरे
जय जय श्री कृष्ण हरे

दुष्टन से वसुधा को बचाने
दुष्टन से वसुधा को बचाने
युद्ध महा युद्ध करे
युद्ध महा युद्ध करे
जय श्री कृष्ण हरे
जय जय श्री कृष्ण हरे

दीन-हीन मित सुख की खातिर
दीन-हीन मित सुख की खातिर
उसके भण्डार भरे
उसके भण्डार भरे
जय श्री कृष्ण हरे
जय जय श्री कृष्ण हरे

प्रेम-बीज धरणी में धरकर
प्रेम-बीज धरणी में धरकर
जग मय प्रेम करे
जय मय प्रेम करे
जय श्री कृष्ण हरे
जय जय श्री कृष्ण हरे

गोपियन को संग प्रेम को कान्हा
गोपियन को संग प्रेम को कान्हा
महा महा रास करे
महा महा रास करे
जय श्री कृष्ण हरे
जय जय श्री कृष्ण हरे

तुम हो जग के कर्ता धर्ता
तुम हो जग के कर्ता धर्ता
तुम ही सब काज करे
तुम ही सब काज करे
जय श्री कृष्ण हरे
जय जय श्री कृष्ण हरे

मैं दीनन में दीन हे केशव
मैं दीनन में दीन हे केशव
शरण तुम्हारी परे
शरण तुम्हारी परे
जय श्री कृष्ण हरे
जय जय श्री कृष्ण हरे

16.8.22

बेटी का आना

कोई भी बेटी,
बेटी की चाहत में नहीं आती
न दादी-दादा की,
न बुआ-फूफा की,
न मौसी-मौसा,
न नानी-नाना,
न किसी भी सम्बन्धी की,
न ही वह चाहत होती है,
समाज की,
अधिकतर माँ-बाप की भी 
चाहत नहीं होती है
बेटी|

बेटी का आना अपशगुन है,
अभिशाप है,
कलंक है,
बोझ है|

बेटी का आना
प्रतीक है,
सिकुड़ी हुई नाक,
चढ़ी हुई भौंहों,
लाल-लाल रक्तिम आँखों
माथे पर पड़े बल का|

बेटी का आना
ताना है माँ के लिए
अपमान है उसकी कोख के लिए
मातम है और
पसरा हुआ सन्नाटा है
पूरे घर के लिए| 

बेटी का आना
चिन्ता है
ससुराल की
दहेज़ की
सुरक्षा की
तरह-तरह की बातों की
प्रतिष्ठा की
मान की, सम्मान की|

असल में बेटी का आना
आना नहीं,
रोना होता है| 

बेटियाँ,
पहली हों
या आख़िरी,
वे अवांछित और अनिच्छित ही होती हैं
और 
वे जब भी आती है
बेटे की ही चाहत में जन्मती हैं|