शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
चोरी पाए जाने पर दंडात्मक कारवाई की जाएगी|
अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

25.3.20

राष्ट्रबन्दी-2

देश आपात स्थिति में है
पूर्ण राष्ट्रबन्दी की,
की गई है घोषणा।
वैश्विक महामारी के काल में
कोई न निकले
अपने निवास से बाहर,
नहीं तो,
किए जाएँगे दण्डित,
बन्द कर दिए जाएँगे बन्दी गृह में।
करते यही घोषणा,
गली-गली घूम रहे हैं सैनिक जन।

तू क्यों घूम रहा है बाहर झुरुआ?
और तेरे बच्चे भी?
क्या तुझे नहीं पता
कि बाहर घूमना है अपराध?
अभी उठा लिया जाएगा,
और दे दिया जाएगा कारावास?

साहब!
यह कारावास,
हम सबको मिलेगा न?
तो ले चलो न मुझे
और मेरे बच्चों को वहीं।
हम दिहाड़ी लोग इक्कीस दिन
बिना खाए कैसे रहेंगे?
बाहर गए,
तो महामारी मारेगी,
घर में रहे तो भूख।
अच्छा होगा,
आप हम सबको अन्दर ही डाल दीजिए
कम-से-कम
दोनों समय का भोजन तो मिला करेगा
जेल में ही सही,
हम कुछ और दिन जी तो लेंगे।

राष्ट्रबन्दी-1

सुना तुमने?
क्या?
बन्द।
बन्द पूरा देश,
बन्द हर प्रदेश
चप्पा-चप्पा बन्द,
कोना-कोना बन्द।
बन्द विश्व, बन्द यह संसार।

जो नहीं डरा कभी गजराज से,
न भयाक्रान्त हुआ वनराज से
उस मानव को
एक सूक्ष्म, अदृश्य जीव ने
स्वेच्छिक काल-कोठरी में
जीने के लिए कर दिया है पूर्ण लाचार।

राजा ने कर दिया है आदेश,
पूर्ण राष्ट्रबन्दी की।
रहोगे एकान्त में
तो ही है जीवन का प्रत्याभूत।
ऐसा कहकर
राजा ने
पल्ला झाड़ लिया है।
अब अपने जीवन के उत्तरदायी
तुम्हीं होंगे।
चाहते हो यदि लम्बा जीवन,
तो चले जाओ एकविंश दिवसीय
पूर्ण गृहवास में।
जीते रहोगे
तो यह समाज पुनः मिल जाएगा।