शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
चोरी पाए जाने पर दंडात्मक कारवाई की जाएगी|
अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

8.2.14

हैपी हग डे



साभार-गूगल,
आज हग दे|
फिर साल भर इन्तज़ार करना पड़ेगा|
प्रेमिका की बाँहों में
लिपटकर हगो,
धीरे-धीरे हगो, या झपटकर हगो,
पर खूब हगो|
हग का भी, 
अपना एक अलग ही आनन्द है|

कामदेव भी आज के दिन
लजा-लजा कर हग रहे होंगे,
और रति भी,
किन्तु आज दोनों हगेंगे|
काश! कि मेरी भी कोई प्रेमिका होती,
मैं भी उसे बाँहों में
जकड़कर खूब हगता,
और वह भी हगती|


बाग़ मेंबगीचा में, घर मेंदूकान में
अगवाड़े में-पिछवाड़े में
,
झाड़ी में
झुरमुट में
अरहर के खेत में

गेहूँ के खलिहान में
,
आरी में
मेड़ में
छुप कर हगो|


चाहे वर्तमान
खुली संस्कृति के अनुसार
,
अगर कंज़र्वेटिव नहीं हो तो
,
खुलेआम सड़कों पर
,
माता-पिता के सामने
,
बड़ों के सम्मान में
,
कालेज प्रांगण में
,
कक्षा में, घर के आँगन में
,
छात्र शिक्षकों के सामने
,
और शिक्षक छात्रों के सामने
हग डालो|


बैठ के हगो,
या खड़े-खड़े
,
झुक कर हगो,

या पड़े-पड़े,
पर आज के दिन ज़रूर हगो|

चूम-चूम के हगिये,
झूम-झूम के हगिये
,
काँख-काँख के हगिये,
पाँख-पाँख के हगिये|
कई दिनों बाद वाले
अपने साथ टिशू-शुशू
पेपर ज़रूर रखना,
न जाने फुर्क़तों का पानी
कितना निकले,
तो उसे पोछेंगे कैसे
?

मेरे अधकचरे हिन्दी भाषी साथियों!
बुरा मत मनाना
मेरे 
'हगनेशब्द से.
घिन भी मत करना 
'हगनेकी प्रक्रिया से|
हिन्दी में यह शब्द
अवश्य असामाजिक है,
लेकिन अंग्रेज़ी के गुलामों के लिए
भरी सभा में सभ्यता का प्रतीक है|
मैं भी सभ्य बन रहा हूँ,
और अंग्रेज़ी में हग रहा हूँ,
क्योंकि जिस तरह
अंग्रेज़ी के 
'रिपोर्टशब्द को हिन्दी के
बहुवचन में 
'रिपोर्टें'
डॉक्टर को 'डॉक्टरों'
,
इस्तेमाल किया जाता है,
उसी तरह से मैंने
अंग्रेज़ी के 
'हगको
हिन्दी में हग दिया है|

मैं जिस जगह रहता हूँ
वहाँ अंग्रेज़ी का ही बोलबाला है,
मजबूरी में मुझे इस
भाषा को हगना पड़ा है|
अब मैं आये दिन अंग्रेज़ी में ही
हगने लगा हूँ|
हगना हिन्दी में हो
या अंग्रेज़ी में
इससे मन तो   
हल्का हो ही जाता हैं
,
इसे वैज्ञानिकों ने भी
प्रमाणित कर दिया है|
तो फिर पक्का न
आज हग दें
?

हे बारह फ़रवरी!
तू साल भर बाद ही क्यों आती है,
जबकि मैं हर रोज़ हगना चाहता हूँ|
चलो साथियों मैं तो सुबह से
इन्तज़ार कर रहा हूँ,
कौन है,

जो मेरे साथ हगना चाहता है?
आओ तो वेलकम
,
जाओ तो भीड़ कम|

1 टिप्पणी: