शब्द समर

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19.2.23

वतन के नाम पर

ज़िन्दगी की ज़मीं पे, दरिया भी जो न थे,
सियासत की राह में, वो सैलाब हो गए।

रोशनी के नाम पर, जुगनू थे तब तलक,
रोशनाई में आज वो, आफ़ताब हो गए।

क़ायम है आज तो, अफ़सानों में ख़ुश्बू उनकी,
चाबुक के दम पे जो, अब गुलाब हो गए।

आवाम की जानिब, जो क़दम भी ना चले,
तारीख़ में वो आज, नायाब हो गए।

जिनको भी फ़िक्र थी, महफ़ूज़-ए-हुक़ूमत की,

वतन के नाम पे, वो क़ामयाब हो गए।

13.2.23

ज़िन्दगी में कभी...

ज़िन्दगी के कभी कुछ लम्हें ऐसे हों कि-
सिर्फ़ मैं हूँ, और तुम हो,
सिर्फ़ मैं हूँ, और तुम हो।

ज़िन्दगी में दिखाई कभी कुछ यूँ दे कि-
नज़रें सिर्फ़ चार हों,
दो सिर्फ़ मेरी हों, दो सिर्फ़ तुम्हारी हों,
और इश्क़ बार-बार हो

ज़िन्दगी में कभी सुनाई कुछ यूँ दे कि-
लबों पे सरसराहट हो,
न तुम कुछ बोलो, न मैं कुछ बोलूँ,
बस भीगी-सी मुस्कुराहट हो।

ज़िन्दगी में कभी बातें कुछ ऐसी हों कि-
हर तरफ़ मदहोशी हो,
साँसों की साजें हों, ख़ामोशी की आवाज़ें हों,
सन्नाटों की सरगोशी हो।

ज़िन्दगी में हमेशा ऐसा रहे कि-
ऐसा इक़रार हो
मैं रहूँ, तुम रहो, और सिर्फ़ प्यार हो,
और प्यार बेशुमार हो।

2.2.23

प्रिय आओ! गीत प्रणय के गाएँ

भूल द्वेष, हृद राग जगाएँ,

प्रिय आओ! गीत प्रणय के गाएँ।


गज देखो अब चिंघाड़ रहा,

वनराज कहीं हुंकार रहा,

भुजंगिनी के गान लहर में,

भुजंग कुण्डलि मार रहा।

जीवन का सुख इनमें पाएँ,

प्रिय आओ! गीत प्रणय के गाएँ।


कोकिल वन में कूक रही,

रति-काम हृदय में हूक रही,

लालायित पिपासु नयनों को,

देख मृगा, मृग मूक रही।

इनसे अपना हृदय मिलाएँ,

प्रिय आओ! गीत प्रणय के गाएँ।


ऋतुराज खड़े पट पीत लिए,

प्रणयी के संग नव गीत लिए,

नव-पल्लव वसना वसुधा में,

मकरन्द कुसुम जस मीत लिए।

हम द्वय से अब एकम हो जाएँ,

प्रिय आओ! गीत प्रणय के गाएँ।