शब्द समर

विशेषाधिकार

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20.5.14

विपश्यना साधकों के लिए...

रति का कोई संयोग नहीं,
अतः मैं प्रेम से बहिस्कृत हो गया हूँ||१||

हास्य मेरा उद्देश्य नहीं.
अतः विनोद से उपेक्षित हो गया हूँ||२||

संताप मेरे लिए अछूत है
अतः व्यथा से तिरस्कृत हो गया हूँ||३||

आकांक्षाओं की उत्कंठा नहीं
अतः उत्साह से निस्कृत हो गया हूँ||४||

हिंसा मेरा लक्ष्य नहीं
अतः क्रोध से नास्तिक हो गया हूँ||५||

भय से कोई सरोकार नहीं,
कुरूपता से त्यजित हो गया हूँ||६||

पर अपमान की कामना नहीं,
अतः घृणा के लिए दूषित हो गया हूँ||७||

नवीनता में कोई नवीनता नहीं,
अतः विस्मय से प्रतिकर्षित हो गया हूँ||८||

जो कुछ भी है वह क्षणिक है,
अतः शांति के लिए मैं परिमार्जित हो गया हूँ||९||