धंधेबाज़
भूल जाए भले
धन्धा
अपना
या
कलाबाज़
अपनी कलाकारी को।
नशेबाज़
चाहे छोड़ दे
धुत
रहना अपनी धुन में,
या
चालबाज़
अपनी अनोखी चालें।
बेशक
हुनरबाज़ बन्द कर दे
रिझाना अपने अलग-अलग करतबों से
टंटेबाज़
हो जाए ख़ामोश
अपनी
टंटपली से।
लेकिन
शाहीन
उड़ता
है,
छूता
है पूरी ऊँचाई आसमान की,
निहारता
रहता है एकाग्रता से
और
फिर झप्पटा मार ले जा जाता है
अपने
आहार को।
बाज़
कभी भी
अपना
शिकार
कभी
नहीं छोड़ता।
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