शब्द समर

विशेषाधिकार

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11.7.22

नासाज़ तबीयत

नासाज़ तबीयत लगती है
हम जाएँ कहाँ कुछ यार कहो
बेज़ार ये नीयत लगती है
मुस्काएँ कहाँ अब यार कहो


अपने भी सारे रूठ गए
दिल आशना में टूटा है
जो हथेली में पैबस्त था
वो हाथ हाथ से छूटा है
बरबाद ये उल्फ़त लगती है
हम जाएँ कहाँ कुछ यार कहो


उम्मीद-ए-मोहब्बत की थी जिनसे
वो दिल अब दिल से दूर हुए
आँखों से गिरते अश्क़ों को
हम पीने पर मजबूर हुए
झूठी ये वसीयत लगती है
मुस्काएँ कहाँ अब यार कहो

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