शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
चोरी पाए जाने पर दंडात्मक कारवाई की जाएगी|
अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

20.11.11

वासना का ज्वार

चला वासना का ज्वार, मिट रहा घर-बार
प्रेम का ये रूप विकराल होता जा रहा.
कहीं भंवरी का बुखार, कहीं मधुमिता का प्यार
बुढ़ापे में भी एन डी से कमाल होता जा रहा.
स्वप्न लखपति का पाल, कन्या चले ऐसी चाल,
कि नेताओं में काम का भूचाल होता जा रहा.
निज बनिता से दूर, मजे होते भरपूर,
'विद्यार्थी' कर्म इनका मकडजाल होता जा रहा. 

16.11.11

बेकार

दीन दुनिया से बेखबर एक इन्सान.
करता है वही जो केवल उसे है पसंद.
उसकी चर्या का भागीदार भी होता है मात्र वही अकेले
जिसके कारण कहा जाता है उसे  मनमानी.
किसी दुसरे के पसंद या नापसंद की नहीं  है
उसे कोई परवाह इसीलिए है वह  बेहद सख्त
लोगों की नज़र में.
सच्चाई को प्रकट करने के लिए
अपनी तीक्ष्ण वाणी के प्रहार
से छलनी कर देता है किसी का कलेजा
चाहे वह हो कितना भी घनिष्ठ.
किसी और के सुख-दुःख में शामिल होने का
नहीं करता दिखावा
जिसके कारण माना जाता है
समाज का एक निर्दयी व्यक्ति.
अपने जीवन या मरण का
कभी नहीं रखता ख्याल
और रहता सदैव मस्त अपनी
रामधुन में
बनाकर चाहरदीवारी आदर्शों और सिद्धांतों की.
इसी चार बाई चार के कमरे में
बसाता है अपनी गृहस्थी
और घिरा रहता है
कूड़े-करकटों, किताबों, धुल और मिट्टियों के मध्य.
उसका श्रृंगार भी होती है
अजीबो-गरीब
जो है
चमकदार दुनिया के ठीक विपरीत.
उसके मुखमंडल पर
सौन्दर्यमान होती है
उसकी मैली-कुचैली घिनौनी सी
दीख पड़ने वाली दाढ़ी.
और ऐसे ही लम्बे घने बल.
महीनों पहले धुला हुआ कुचैला कपडा.
दुनिया जिसे मानती है सुन्दरता
उसे बनाने में उसे समझ आती है बर्बादी वक़्त की.
उसके लिए नहीं है कोई भी घनिष्ठ
चाहे वे हों माता-पिता,  बनिता या बेटा.
किसी के मरण पर नहीं बहाता अनायास आंसू
नहीं थिरकते पांव किसी के आगमन पर.
लालच या महत्वाकांक्षा तो स्पर्श भी नहीं कर पाती
क्योंकि उसका समुद्र सदैव रहता है उसके पास.
नहीं होतीं मीठी बातें रिझाने वाली
न ही खर्चने को मोटी रकम.
उसके पास
होती हैं बातें,
बड़े-बड़े आदर्शों, सिद्धांतों की
जिसे 
पचा सकता है मात्र वही.
इसीलिए नहीं बैठना पसंद करता कोई
उसके साथ लम्बे समय तक.
कर देता है  नीरस अपनी ख़ामोशी
या वाचालपन से ही
साथ रहने वालों को
यही कारण है कि नहीं बन
पता वह किसी की पसंद.
ऐसा नहीं की उसे किसी से प्रेम नहीं है
प्रेम तो करता है
लेकिन विचारों के सागर में
गोते लगाने वाला
भावनाओं की दरिया में कूदना नहीं चाहता.
लेकिन जाने-अनजाने
कभी
हो जाता है उससे भी यह अपराध
क्योंकि वह है प्रक्रति प्रेमी
और मनुष्य भी है इसी का एक अंश
और कूद पड़ता है
दुनियादारी की खाई में.
तब लोग समझने लगते हैं
उसे एक बेबस इन्सान
जिसे तलाश है किसी के साथ की
और पहुँचाने लगते हैं ठेस
उसके स्वाभिमान को.
किसी की मदद  करने पर
समझने लगते हैं उसकी लाचारी.
किसी के साथ रहने पर,
किसी का साथ देने पर
कहा जाता है उसे गुलाम.
लोग नहीं देते उसे समय
क्योंकि
समझते हैं उसे
बेकार, नीरस, असामाजिक, गवांर.
शूल की तरह चुभ जाती हैं 
यह बातें उसके ह्रदय में.

और तब धधक उठती है लौ
उसके आत्मा की.
मन से परास्त आत्मा
पुनः जीत लेती है स्वयं को.
और फिर मोड़ देती है उसी मार्ग पर
जहां से भटककर चला आया था यहाँ
और
शुरू कर देता है अपना बेरुखापन,
नतीजन
धीरे-धीरे लोग करने लगते है उससे किनारा
और
फेक देते है उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह.
प्रारंभ होने लगता उसका वही एकाकी जीवन
जीसमें जिया करता था वह कभी.
लोग खाने लगते हैं उस पर तरस
और देने लगते हैं उसे सहानुभूति.
दुनिया में बचती हैं मात्र उसकी औपचारिकताएँ 
और
अपने पुराने धुन में मस्त
अकेले ही
चलता ही जाता है, चलता ही जाता है, चलता ही जाता है
और हो जाता है निर्वाण
जो रह जाता है गुमनाम
जिसे दिया जाता है नाम.
'भुवनेश्वर की मौत'
यही है अस्थिर, परिवर्तनशील दुनिया में
उसकी प्रकृति,
उसकी प्रवृत्ति,
उसका स्वाभाव,
उसका आचरण,
उसका मट-मैला जीवन
जो है स्थिर
अपरिवर्तनीय.
जिसे नहीं करता कोई और पसंद
न ही वह किसी और को.

4.11.11

प्रेम का अकाल

एक दिन मेरे एक प्रगाढ़ प्रेमी-मित्र ने कहा, “साहब! कभी हमें भी समय दे दिया कीजिए; संसार में पढ़ने लिखने के अतिरिक्त भी काम होता है, किताबों के आलावा मित्र-सखा भी होते हैं| कभी उनसे भी मेल-मिलाप कर लिया करिए| आप तो बस अपने ही धुन में डूबे, किसी को कुछ समझते ही नहीं| श्रीमान्! ज़रा एक बार नज़र घुमा कर देखिये, आप जिन लोगों को छोड़ कर गये हैं वे आपसे मिलने के लिए कितने आतुर हैं| लोग आपको बहुत चाहते हैं, बहुत मोहब्बत करते हैं| आप एक बार आवाज़ देकर देखिये, लोगों का हुजूम आपके पीछे खड़ा होगा|” मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, “मैं कब से इतना वांटेड हो गया? आज तक कोई नेतागिरी टाइप का गुनाह भी तो नहीं किया. कभी बहुत बन-ठन कर, सज-सँवर कर भी नहीं निकला| हमेशा मैला-कुचैला रहा; भूतों-प्रेतों की तरह दाढ़ी बढ़ाए, किसी से प्यार भरी दो बातें भी नहीं की| सभ्य समाज में गवाँर की तरह रहा| इसीलिए प्रेमिका ने भी दुत्कार दिया| फिर भी लोग मुझसे ‘प्यार’ करते हैं? हे करुणामयीं! हे लीला बिहारी! ये क्या हो रहा है मेरे साथ? क्या लोग नीम-करेले को स्वार्थ सिद्धि के अलावा भी पसन्द करने लगे?” लोगों को विपत्ति में ईश्वर याद आते हैं, मैं इस सुख की घड़ी में ही याद कर बैठा|
    मेरा कन्हैया भी एक्सपेरिमेंटल निकला| उसने कहा“रे पगले! प्रेम करो तो जानों| वत्स! उद्धव मत बन| तुझे लगता है, तुझसे कोई प्रेम नहीं करता? तो एक बार ट्राय करने में क्या जाता है?” कन्हैया बोले जा रहा था, और मेरे पास उस समय सुनने के आलावा कोई चारा नहीं था| असल में जब आप भूल से किसी को ज्ञानी समझ पुकार कर, उससे मार्ग पूछने लगते हैं, तब वह अपने आपको महा ज्ञानी समझ लेता है; और यदि आपमें माद्दा है, तो वह आपको टीवी के किसी समाचार चैनल की तरह, एक ही बात को बार-बार दोहराकर ट्वेंटी फ़ोर इन्टू सेवन सुना सकता है| आपको आपका भविष्य सेट मैक्स के सूर्यवंशम की तरह दिखाता जायेगा| बहरहाल कृष्ण ने बोलना शुरू किया, “देख मैं तुझे अपना गूढ़ एक्सपीरियन्स बताता हूँ| जब मैं गोकुल से मथुरा चला आया था, तब यमुना में बाढ़ आ गई थी; और वह समय बारिश का भी नहीं था| इसका कारण पता है तुझे?” मैं विमूढ़-सा न में सर हिला दिया| लीला बिहारी उवाचा, “उसका कारण था, मेरे वियोग में वृन्दावन और गोकुल वासियों का महाविलाप|” उस भारी अश्रु प्रवाह के कारण, यमुना में नमकीन पानी भर गया था| उसके बाद पूरे द्वापरयुग में व्रज क्षेत्र का नमक यमुना किनारे ही बनता था| बाद में परीक्षित ने कलयुग को सब सौंप दिया, और कलयुग ने सारा नमक नष्ट कर दिया, नहीं तो आज उत्तर प्रदेश मन्दिर-मस्जिद के नाम पर लूटपाट, बलात्कार के आलावा, नमक के लिए भी प्रसिद्द होता, फिर वहाँ कथित स्वदेशी, किन्तु पूर्ण विदेशी डिज़ाइन की हाफ पैन्ट पहनने वाले केवल राम के लिए ही नहीं; नमक के लिए भी दंगा करते-कराते|” मैं आँखे फाड़े सुन रहा था|
मुरारी बोला, “तो तू भी एक बार देख ले बेटा| तुझे कितने प्रेम करने वाले हैं? तेरे पब्लिक रिलेशनशिप (पी आर) में कितना दम है? फिर वह वह हँसते हुए बोला, “तुझे एक और गूढ़ और मज़ेदार रहस्य बताता हूँ| जब भी कोई औपचारिकता करे, “आप मेरे घर भी किसी दिन पधारें| मेरे साथ दो रूखी-सूखी रोटी पाएँ|” बस बेटा बिना समय गवाएँ पहुँच जा उनके निवास पर| प्रेम परखने का इससे सुन्दर अवसर कभी भी प्राप्त न होगा; क्योंकि एक तो वे महाशय मिलेंगे नहीं, और अगर मिल गये, तो भैया-भाभी जो भी हों, उन्हीं से बोल, “बहुत तेज भूख लगी है|” पुत्र! प्रेम की असलियत मटके में सर छुपाकर खुसफुसा-खुसफुसा कर बोलेगी, जिसे मात्र तेरी बेशर्मी ही सह पायेगी| मैंने बहुत किया है, तभी तो माखनचोर कहलाया|”
अब वह मुझे ज़ोर देकर कहने लगा, “वत्स! तू जा| अवश्य जा| देख! मैंने तो केवल दो गाँव छोड़े थे| तू तो अपना गाँव, जनपद, राजधानी, विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय इतने सारे जगहों को छोड़ कर आया है| बेटा! अगर इतने सारे लोगों ने कहीं एक साथ विलाप किया, तो इस महाक्रन्दन से तो महाप्रलय समय से पहले आ जायेगा| मेरा कलकी अवतार का सपना अधूरा रह जायेगा| और तू ये भली-भाँति जानता है कि लोग मुझे इसीलिए मानते हैं, क्योंकि मैं लीलाएँ करता हूँ, और ये वाला अवतार मेरे लिए बहुत इम्पोर्टेंट है| एक्चुअली पिछले जन्म में मैंने कई गोपियों को वचन दिया है, या यूँ समझ ले डेट दिया है| उनसे मिलना बहुत ज़रूरी है, तभी तो आदर्श प्रेमी बनूँगा|” मैंने पूछा, “तू तो भगवान् है, जब चाहे अवतरित हो जा, तू क्यों समय की प्रतीक्षा कर रहा है?” वह सहमते हुए बोला, “अबे पागल है क्या तू? उत्तर प्रदेश में अवतार लूँगा, वहाँ गोपियों के साथ डेट पर जाऊँगा? ओ भाई! एन्टी रोमियो स्क्वायड से पिटवाएगा क्या? अबे तू मेरा भक्त है, या दुश्मन? ऐसे कौन जानबूझकर अपने भगवान् को मौत के मुँह में धकेलता है यार? देख तू तो मेरा असली वाला भक्त है| भक्त ही नहीं तू तो अपने आपको मेरा 'विशुद्ध, एकलौता चेला' कहता है| मैं तेरा भगवान् होकर, तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ, मुझे एक बार फिर दुनिया में आने का मौका दे-दे| एक बार अपने सभी महाप्रेमियों से कांटेक्ट कर ले| उनसे मुलाक़ात कर ले| अगर भक्त ही भगवान् की नहीं सुनेगा तो कौन सुनेगा?
 अच्छा मैं क्या है कि कन्हैया की बात टाल नहीं पाता, अतः टिकट कन्फर्म न होने के कारण, ट्रेन में ज़ुर्माना दे-देकर अपने प्रेम-पिपासों और पिपासियों से मिलने के लिए उन सभी स्थानों पर गया जिन-जिन स्थानों को मैं छोड़ कर आया था| पहुँचने से पहले तो मैंने आधुनिक संचार साधनों के माध्यम से सबको सूचित किया| फिर पहुँचकर प्रेमभरी आवाज़ में पुकारा, हे चातकों! मैं आ गया हूँ| तुम्हारे प्रतीक्षित बंजर जैसलमेरी ज़मीन को चेरापूँजी-मोसिनराम समझकर मुसलाधार प्रेम की बारिश करूँगा| आओ! मुझसे प्रेमालाप करो| एक दिन बीता, दो दिन बीता, तीन दिन बीता मैं एक ही स्थान पर बैठा प्रेमानुयायियों की बाट जोहता रहा, परन्तु मेरे लबार प्रेमियों के काम की व्यस्तता ने जो उनके कान पकड़े कि मैं उनके सुर्यमुखों और चन्द्रमुखियों के दर्शन नहीं पा सका| मुझे लगा कि शायद सदी की सबसे बड़ी घटना उन्ही चार-पाँच दिनों में घट गयी| जैसे सूर्य-चन्द्र ग्रहण एक साथ हो गये हों| मिले कौन? अनपेक्षित बेचारे तारे| अपने इतने बड़े जीवन में, प्रेमियों का इतना बड़ा अकाल मैंने कभी नहीं देखा था|
मैंने ऊपर कन्हैया की और देखा, वह स्वर्ण-मुकुट धारण किए, होठों से मुरली चिपकाये, दही टपकाते हुए मुस्कुरा रहा था| मेरे समझ में आ गया कि जब तक किसी को मुझसे कुछ प्राप्त होने के आसार नहीं होंगे, मुझसे मिलना क्या, अँगूठा तक नहीं दिखाएँगे| तुलसीदास ने लिखा है, "भय बिनु होय न प्रीत" पर मैं उन्हीं की दूसरी बात कहता हूँ, "स्वारथ लाग करहिं सब प्रीती|” लीला बिहारी तो माना-जाना देवता है| लोग उसे साक्षात् स्वर्ग के दर्शन कराने वाला मानते हैं, साथ ही नन्दराज का बेटा, यानि वह पैसे वाला भी है| मेरे मन ने कहा, “बेटा! तुम तो भुवनेश्वर की तरह गलियों में ज़िन्दगी बिता रहे हो, तुम्हें कोई क्यों घास डालेगा? सही बात तो है "बेल को लोग काटेंगे नहीं, तो क्या पानी डालेंगे?"