शब्द समर

विशेषाधिकार

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26.8.12

आशियाना

चलो मांगते हैं किसी से गारा और
बनाते हैं मिलकर
आशियाना गुलिस्तान का
करके इकठ्ठा
मेरी रेत
इसके पेड़
तुम्हारे पत्थर.

24.8.12

Death, my friend

Oh my friends! I’ve finished my time.
Lived how much time I had gotten in my life line.
Don’t lament and don’t cry
You will see me in the sky.
My dear! Don’t be sad, don’t weep
I’m going on a sleep-
Sleep for a long time,
Sleep for always
Never watch, never wait on my ways.
I lived life so dark
There was neither any flame nor spark.
I’m going so far
Oh I’ll sleep so deep
Where there will not be any
Disturbance, no one to cry or weep
Oh I’m feeling so calm and at peace
Because time is coming for me with a kiss
I’m going to sleep
So deep, so deep, so deep...


Deep sleep, deep sleep...

पहल

उन्होंने कहा
पहल करो किसी पहल के लिए
मैंने भी सोचा
जरूर कोई पहल होनी चाहिए
एक अच्छी पहल के लिए।
मस्तिष्क जद्दोजहद में था
कि
किस पहल पर करूं पहल?
एक रोटी की पहल करने वाले
कलुआ की
या
दिन-दहाड़े कइयो के हवस की
मारी किसी सीमा, रेखा या रजिया की
जिनकी जन्म-जन्मान्तरों से
उघड़ी देह को ढकने के
लिए
नहीं हुई आज तक एक
चिथड़े की भी पहल?
क्या मेरी पहल से होगी
कोई पहल
वहां
जहां की पहल से रहती पूरे देश में
चहल-पहल?
क्योंकि मेरी पहल की पहुंच
नहीं है उतनी ऊपर तक
कि
कोई
तकल्लुफ भी करे पहल की।

पहल तो की जाती है
उन पहलों पर
जिनकी पहल होती है
वातानुकूलित भवनों में
और ख़त्म हो जाती है
जूतम-पैजार की पहल में
हमारी ही पहल से पैदा हुए
पहलुओं के। 
तू-तू मैं-मैं की पहल
से गिरेबान की खींचातानी
फिर एक-दूसरे की
मां-बहनों से मौखिक अनैतिक संबन्धों
की बारिश का अन्त होता है
चरण-पादुका रूपी ओलों के प्रहारों की पहल से।

फिर
पहल करती है मीडिया
शर्म महसूस करने की
जिसे घोंट कर
पी चुके हैं शर्म-सागर के गोताखोर
बैठकर सर्वोच्च भवन में।
बदल जाता है मुद्दा पहल का
और पहल होने लगती है
किसी और पहल की।
धरनी-पुत्र की उद्धारक पहल
दफ़न हो जाती है
जूतों की पहल से
और
हवा में मटरगस्ती करते
सुनाई देते है
हवामहल में पहल किये गए
नेताओं के
हवाई पहल।
कलुआ के लिए की गई
पहल को कर दिया जाता है स्थगित
अनिश्चितकाल के लिए
क्योंकि
जूता रूपी
आवश्यक पहल पर
सबसे पहले ध्यानाकर्षण किया गया था।