शब्द समर

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27.10.14

एक और मक़सूद

चिपों-चिपों| ओ विद्यार्थी! तू भी आ जा हमारी मीटिंग शुरू होने वाली है
आमतौर पर अपने लिए तुम-ताम या तू-तकार वाले शब्द मुझे पसंद नहीं है| जैसे ही ऐसे शब्द मेरे लिए कोई निकालता है मेरा आत्मसम्मान इतना तेज़ ठोकर खाता है कि उसे महीनों भूख नहीं लगती किन्तु यहाँ ऐसा शब्द निकालने वाला कोई मनुष्य नहीं एक गधा था| अब गधे से अपने लिए सम्मान की अपेक्षा करना मुझे स्वयं को उसके बराबर खड़ा होने जैसा लगा अतः सुनी-अनसुनी करके मैं आगे बढ़ने लगा|
"तुम गधे के गधे ही रह जाओगे|" किसी की बुलंद आवाज़ सुनाई दी| अपनी यह प्रशंसा मुझे बहुत कड़वी लगी किन्तु खून का घूँट पीकर रह गया और जैसे ही उधर देखा पता चला वास्तव में वह गधे को ही कहा जा रहा था| यह भालू साहब थे| उन्होंने आगे गधे को समझाते हुए कहा, "मूर्ख! ये मनुष्य हैं| मनुष्य, सृष्टि का सबसे समझदार प्राणी होता है| उन्हें सम्मान से बुलाओ|" आइये विद्यार्थी जी| आज हम वन्य प्राणी एक सभा का आयोजन कर रहे हैं| इसमें सभी प्राणियों को आमंत्रित किया गया है, मनुष्य को छोड़कर किन्तु आप इधर से जा ही रहे हैं तो थोड़ा समय हमारे लिए भी निकाल लीजिये बड़ी कृपा होगी|
"ये भोजन बचा हुआ है, तुम न खाते तो जानवरों को खिला देते| अब तुम आ ही गये हो तो खा लो"| मनुष्य द्वारा कही जाने वाली यह उक्ति मुझे तुरंत स्मरण हो आई| नज़र दौड़ाया तो चारों ओर जानवर ही जानवर| बच के निकल पाना खट्टा अंगूर जान पड़ा, अतः उन पर कृपा कर दी|
यह बात है सुंदर वन के उजाड़ प्रदेश की| जो ठूँठ ही ठूँठ, चट्टानें ही चट्टानें, रेत ही रेत से सौन्दर्यमान हो रहा था| सूर्य का प्रकाश डामर और सीमेंट की सड़कों पर ऐसे फैला था कि नज़र पड़ते ही भौतिकी का परावर्तन का सिद्धांत याद आ रहा था| कुछ ऐसे भी स्थान थे जो टॉम अल्टर के सर की तरह दिख रहे थे| वहाँ कहीं-कहीं एक्का-दुक्का पेड़ रहे होंगे| उन्हें खोजने का मतलब था गंजी खोपड़ी में बाल ढूँढना जिसके लिए मुझे विशेष लेंस की ज़रूरत पड़ती अतः मैंने उसकी जहमत नहीं उठाई
चीता, बाघ, खरगोश, कोबरा, बाज, गृद्ध सभी जानवर और पक्षी बारी-बारी से आ रहे थे| फिर हाथी जी आये और अंत में महाराजा शेर साहब आयेतब बैठक प्रारम्भ हुई| एक-दूसरे का परिचय लिया जाने लगा| सभी प्राणियों में मैं थोड़ा अलग दिख रहा था| सबकी प्रश्नवाचक दृष्टि को समझते हुए बन्दर जी आगे आये| महाराज! यह मेरा पोता है| इसकी पूँछ अब नहीं है| समय परिवर्तित हो गया है| ये लोग अब हमसे अधिक सोच-विचार कर लेते हैं|
ओह तो यह मनुष्य है? शेर ने दहाड़ लगाई|
बंदर को लगा शेर मुझे अपना शिकार समझ रहा है अतः गिड़गिड़ाते हुए बोला जी| जी लेकिन है हमारी ही तरह|
आप डरें नहीं बंदर जी मैं इन्हें नहीं खाऊंगा| अभी ये हमारे अतिथि हैं| मेरी तो जान में जान आई|
कहिये आज की बैठक का विशेष मुद्दा क्या है? शेर महोदय ने हाथी से पूछा?
इस दौरान कुछ कबूतर शेर के पास जा जा कर अपनी तस्वीरें उतारने लगे|
महाराज! सभी जानवर मनुष्यों द्वारा उनके लिए किये जा रहे बर्ताव से बहुत दुखी हैं| मुझे तो काटो तो खून नहीं| भाई मेरी ही शिकायत शुरू| मैं मन ही मन सोच रहा था| महाराज सभी मनुष्य अपनी करनी की तुलना हम जानवरों से कर हमे बदनाम कर रहे हैं| हाथ जी शिकायत भरे लहजे में बोल रहे थे|
अच्छा वो कैसे? मनुष्य तो हमसे अधिक गुणवान, शक्तिशाली कहे जाते हैं फिर जानवरों से तुलना करने की क्या आवश्यकता आन पड़ी? वैसे किस-किस जानवर से अपनी तुलना करते है? शेर ने आश्चर्य से पूछा|
महाराज! हाथी महोदय ने गिनाना प्रारम्भ किया| मैं अपने आराध्यों और इष्ट देवताओं के स्मरण में लग गया| मुझे लगने लगा बेटा विद्यार्थी आज तो तू गया| अम यार भालू से कोई बहाना कर निकल लिए होते तो| गये बेटा तुम तो हे लीला बिहारी मेरी रक्षा करो सवा मन प्रसाद कल के कल तुम्हारे पास होंगे कहो तो स्टाम्प पर लिख दूँ लेकिन अभी मेरी रक्षा करो|  तब तक हाथी की आवाज़ सुनाई देने लगी-
दूसरों के इशारों पर चलने और मुफ़्त में खाने वाले को-कुत्ता,
अपनी ताक़त या दमख़म दिखाने वाले को-शेर या चीता,
धमकी देने वाले को-गीदड़,
ग़रीबी और गंदगी में जीने पर मजबूरों को-सूअर,
डर जाने वाले को-भीगी बिल्ली,
छोटे बच्चे को-मेमना,
चरित्र बदलने वाले को-गिरगिट,
झूट-मूठ रोने और आँसू बहाने वाले को-घड़ियाल,
अपना दीमाग प्रयोग न करने वाले को-गधा,
काम न करने वाले को-बैल,
चुपके से वार करने वाले को-भेड़िया,
डर के छिप जाने वाले को-चूहा,
दूसरों की बात की नकल करने वाले को-पिट्ठू तोता,
मोटे तगड़े को-गैंडा या भैंसा,
आलसियों को-अजगर
कमज़ोर और आम इन्सान को-बकरा
उत्पात मचाने वाले को-बन्दर,
मुग़ल-ए-आज़म फ़िल्म में "जब प्यार किया तो डरना क्या" गाने के समय अनारकली (मधुबाला) को देखकर जो प्रतिक्रिया अकबर (पृथ्वीराज कपूर) की थी मुझे वही प्रतिक्रिया अभी शेर की आँखों में दिख रही थी| इतनी छिछोरी जाति होती है इंसानों की मैंने तो सोचा भी नहीं था? दरोगा-ए-ज़िन्दान पकड़ लो इस अहमक आदमी को| शेर की गर्जना ने पूरे उजड़े जंगल के ठूठों में हलचल पैदा कर दी|
दुहाई हो हुज़ूर दुहाई| मैंने हुज़ूर की ताउम्र सेवा की है| यह मेरा पोता है हुज़ूर इसे माफ़ करें| बंदर की आँखें छलछला आईं|

महाराज ऐसा लगता है भगवान् अब हमें और अधिक धरती पर नहीं रखना चाहता| भालू बोला| ओह तभी शायद इन्सान मंगल ग्रह तक पहुँच गया अब हम सबको शायद वहीं भेजा जायेगा| गीदड़ ने अपनी राय प्रकट की|
कैसे? गीदड़ की बात को अनसुनी करते हुए शेर ने भालू से पूछा|
वह ऐसे महाराज कि भगवान् ने हम सभी जानवरों के गुण तो इंसानों में भर दिए, तो अब हम जानवरों का इस धरती पर क्या काम?
इंसान इन्सान को खाने लगा है, इन्सान कपड़े फेक अब नंगा रहने लगा है, इन्सान अपने किसी भी रिश्ते के साथ जहाँ चाहता है वहीं खुले में मैथुन कर लेता है, और तो और अब इन्सान अपने माँ-बाप को भी बूढ़ा हो जाने पर गलियों में भीख माँगने के लिए छोड़ देता है और घर में आया को नौकरी पर रख लेता है| भगवान् ने हम सब के साथ छल किया है महाराज वह All in one (एक में सभी) की अवधारणा रच कर हम सबसे मुक्ति पा लेना चाहता है|
मुझे तो लगता है इंसान ने भगवान् को कुछ खिला-पिला कर अपनी ओर मिला लिया है| यह आवाज़ थी कुत्ते की| मैं रोज़ देखता हूँ हज़ारों का प्रसाद चढ़ाते हुए| इसीलिए तो इन्सान वनों को काटकर सभी जानवरों का घर उजाड़ रहा है और भगवान् है कि खामोश बैठा है|
फिर क्या किया जाय? मामला तो बहुत ही गम्भीर है| भगवान् का इंसानों के साथ मिल जाने वाली बात से तो मैं सहमत नहीं हूँ लेकिन इन इंसानों से कैसे निपटा जाय? हाथी ने प्रश्न उठाया|
एक ही तरीक़ा है| शेर गर्जा|
क्या? वनराज की ओर सभी की आशामय दृष्टि उठी|
शेर अपनी उन्मत्त रक्तीली आँखों से मुझे देखते हुए बोला,
"एक और
मक़सूद|"
मेरी आँख खुली तो पसीने से तर-ब-तर था|

11.10.14

रेगिस्तानी आँखें

चित्र-साभार-गूगल 

नौरा! नौरा! सुनो नौरा!
तुम चली जाओगी तो मेरी ज़िन्दगी अधूरी रह जाएगी|वह नौरा के पीछे पुकारता हुआ दौड़ रहा है, और नौरा है कि पैर सर पर रखे ऐसे सरपट भागी जा रही है, जैसे कोई शेर उसके पीछे लगा हो|नौरा आगे बहुत दूर तक देख रही हैवह केवल नौरा के क़दमों को| नौरा भाग रही हैवह दौड़ रहा है| नौरा के भागने की अपनी कोई गति नहीं है, वह जितना तेज़ दौड़ता है, नौरा भी उतनी ही तीव्र गति से भागती है| दोनों के पैर निःसंकोच निरन्तर गति से गुरुत्वाकर्षण के साथ ठिठोली कर रहे हैंउस निर्जन में दो लोगों के इस तीव्र पदचाप से रास्ते धूल उड़ा-उड़ा कर आश्चर्य व्यक्त करने लगे|
उसके पुकारने की ध्वनि अब चिल्लाहट में बदल गई| नौराआआ! नौराआआ! सुनोंओओओ नौराआआआ! मैं तुम्हारे बिना अधूरा रह जाऊँगाआआआआ|

अन्ततः बचाव ने आक्रमण पर विजय पाई, और नौरा उसकी आँखों से धुँधली होती हुई बिल्कुल ओझल हो गई| उसकी आँखों से सागर बह निकला, और अपने दोनों हाथों को सर पर रखते हुए वह वहीं ढेर हो गया|

कुछ दिनों बाद रेगिस्तानी ज़िन्दगी लिए, वह अपने कमरे में बैठा हुआ है| उसकी आँखें तपती दोपहरी की भाँति एकदम लाल हो कर ऐसी सूख गई हैं, जैसे जेठ माह की मिट्टी और पलकें हवा भरे गुब्बारे की तरह फूली हुई हैं| अचानक उसकी रेगिस्तान में एक लहर उठी

दरवाज़े पर दस्तक?

ओह! ज़िन्दगी के अन्तिम पड़ाव पर कौन हो सकता है? मेरा पानी तो सूख चुका है, फिर यह तरंग कहाँ से आई? यही सोचते हुए उसने दरवाज़ा खोला| आँखें एकाएक मृगमरीचिका की तरह चमक उठीं| काँपते हुए होठों से एक शब्द निकला

नौरा?

नौरा उसके गले से ऐसे चिपक गई, जैसे अमरबेल आम के पेड़ में| उसकी आँखों का समन्दर ज्वार-भाँटे की तरह हिलोरें मारने लगा| दोनों चिपके हुए हैं| समुद्र के सभी जीवों में रसता आ गई है| सभी में हलचल होने लगी है| लहरें ऐसे उछालें मार रही हैं, जैसे आसमान को भिगो देना चाहती हैं| तभी नौरा का रंग भी समुद्री होने लगा, और एकाएक उसकी पकड़ एकदम ढीली हो गई

नौरा के हाथ में एक काग़ज़ है|

मेरे प्रिय,

प्रेम को त्याग, प्रेम की खोज में, प्रेम से दुत्कारी, वापस प्रेम की बाँहों में दम तोड़ने की अभिलाषा में एक असफल और अधूरी प्रेमिका|

अभागिनी

नौरा

उसके समुद्र से तेज़ धार बह निकली, और फिर वापस वह रेगिस्तान हो गया|