शब्द समर

विशेषाधिकार

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4.2.11

माँ सुनो तुम्हारे आंसू नहीं ललकार चाहिए


माँ सुनो तुम्हारे आँसू नहीं ललकार चाहिए,
देश को बचाने की पुकार चाहिए,
मुझे तुम्हारे हाथों से तलवार चाहिए|

अक्षय-निर्भय पूतों की
मत भूलो तुम माता हो,
जिनके सीने से अक्सरतूफ़ान ही टकराता हो|
इन वीरों को माँ तेरी यलगार चाहिए|

कर तिलक हमारे माथे पर
,
हाथों में तुम शस्त्र दो,
कर दूँ शत्रु धराशायी एक क्षण में,
मुझको वह ब्रह्मास्त्र दो,
माँ तेरी एक बार मुझे फुफकार चाहिए|

शूरवीरों का मस्तक
,
झुका कोई क्या पता है,
तेरे चरणों के सिवा माँ,
अपना कौन विधाता है,
इन चरणों की माँ हमे रफ़्तार चाहिए|

तुम हो माता शूरवीर की
,
भावुकता का त्याग करो,
रग-रग में तुम मातु हमारे,
तेज़ लपट की आग भरो,
तुम्हारी आँखों से ज्वाला-अंगार चाहिए|

नहीं लजाऊँ दूध तुम्हारा
,
रिपु की छाँव जो पड़ जाये,
कर दूँ छिन्न-भिन्न मै उसको,
अगर पाँव भी दिख जाये,
मुझे तुम्हारी इच्छा का गुबार चाहिए|

एक हाथ तोड़ मैं उसके
,
दूजे में रख जाऊँगा,
मस्तक होगी पड़ी धरा पर,
धड़ स्वान तक पहुँचाऊँगा,
एक बार तुम्हारे हुक्म का उद्गार चाहिए|

ममता के आँचल से माता
,
अब हमको तुम मुक्त करो,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी,
शास्त्रों से संयुक्त करो,
पन्ना जैसे मोह का तिरस्कार चाहिए|

तुम शक्ति दुर्गा की
,
चामुण्डा भी तुम्हीं हो माँ,
राजपूताने की पद्मिनी हो,
लक्ष्मीबाई तुम्ही हो माँ,
तुम्हारे भीतर सुनामी-सा अब ज्वार चाहिए|

3.2.11

अबके बरस हम जइबे गवनवा

अबके बरस हम जइबै गवनवा रे
सुन ले रे सजनी
घोड़ी में चढ़ी के आइहैं सजनवा रे
सुन ले रे सजनी

१) करु मोर सबरे सजू सिंगार
हम चउके मा जइबै,
पियउ के संग परदेस निकरि फेर
कबहूँ न अइबै
भरि दे हाथ मोरी चूड़ी-कंगनवा रे
२) छूटी पिरितिया मायरि से अब
सासुर से लागी
अपने पराये लागें घर-परिवार मन
विरति सी जागी
पियउ के सुधि करि सिहरे रे मनवा रे
सुन ले रे सजनी
३)लाल-लाल चुनरी औ लाल सेनुरवा
लाल मोर अंगवा
लाल रंग डोली औ लाल फूल-माला संग
लाल बजनहवा
लाल रंग पिया संग निकारे परनवा रे
सुन ले रे सजनी
४) चारी जना के कन्धा की गाड़ी पे
सवारी हम करबै
छोड़ी पुरान हम नये घर जात मन
तनिकौ न डरबै
पाइ मोहे संग मुसुकाये सजनवा रे
सुन ले रे सजनी
५) राम-नाम के विदाई गीत होई जब
घर हम छोड़बै
परछन करिहैं गोती-परिवार जब
घर से निकरबै
केहू आँखी आँसू केहू गाई मंगल गनवा रे
सुन ले रे सजनी
६) माया त रोवें खिरकी में जाइ
बाबा रोवें दुअरवा
बहिनी त रोवे कोठरी लुकाइ
भैया रोवें ओसरवा
प्यारी-सुकुमारी किहिस सून अगनवा रे
सुन ले रे सजनी
७) दक्खिन दिसि एक नदी के किनार
जहाँ मोर ससुररिया
उजरि-उजरि लगे उहाँ के जहान
नहीं मानुस के डेरिया
रहबे अकेले लेई आपन परनवा रे
सुन ले रे सजनी
८) चौखुट घर में निमुठ ओसारी जहाँ
हम सोई जइबै
रीती-रिवाज जब से पियउ निभैहें
तब तक हम सुसतैबै
लाल लपट बनी अइहें सजनवा रे
सुन ले रे सजनी