शब्द समर

विशेषाधिकार

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30.12.22

काव्य-पात

बहुत दिनों से
कविता मन में आती हैं,
कुछ भाव जगाती है,
और पहले इसके कि
दूँ उसे रूप कोई,
लाऊँ दुनिया के सामने,
न जाने क्यों
वह बिना कुछ कहे-बताए
स्वयमेव ही
नष्ट हो जाती है?

मेरे मन के
गर्भपात से
मैं
घुटता ही रह जाता हूँ,
भीतर-ही-भीतर।
कविता भी कभी-कभी
बड़ी निर्मोही होती है।

मेरी संज्ञा

मेरी संज्ञा
कवि नहीं है,
क्योंकि मैं
कवि और कविता के विशेषणों,
से सदैव अनभिज्ञ हूँ। 

मैं
सर्वनाम हूँ,
जो
स्वनाम से स्थानान्तरित,
गुप्त हूँ,
अनाम हूँ।

मैं, कवि नहीं हूँ

 मैं,
कवि नहीं हूँ।

मैं,
वर्णमाला की क्रमबद्धता को तोड़,
अक्षरों, शब्दों
और
वाक्य विन्यास में,
व्याकरण के सम्विधान का
उल्लंघन कर,
बलात उनमें भाव-विचार भरता हूँ।

मैं कवि नहीं हूँ।
मैं,
कविता नहीं लिखता हूँ।
मैं,
मन में उठ रहे उद्वेगों को,
मात्राओं के छन्दों से बाँध,
शब्दों का वस्त्र पहना,|
उपमाओं से अलंकृत कर,
रसों में डुबाकर
पाठकों को,
आस्वादन के लिए परोस देता हूँ।
मैं कविता नहीं लिखता हूँ।

2.12.22

तनहाइयों की बातें

तुमने प्यार को-
सिर्फ होते देखा,
उसे मरते नहीं।

तुमने आँखों को देखा-
सिर्फ चमकते हुए,
झरते नहीं।

होंठों को तुमने देखा-
सिर्फ मुस्कुराते हुए
उन्हें फफकते नहीं।

तुमने बाँहों को देखा-
झूलते हुए सिर्फ़,
लरज़ते नहीं।

तुमने क़दमों को-
सिर्फ़ चलते हुए देखा,
उन्हें लड़खड़ाते नहीं।

मरना,
झरना,
फफकना,
लरज़ना,
लड़खड़ाना-
ये तन्हाइयों में होते हैं,
नुमाइशों में
नहीं दिखतीं।