शब्द समर

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1.12.10

कवि की बात कांटे सी

क्षमा करना मित्रों,
आपको खलती है मेरी बात.
क्योंकि मै कहता हूँ
सत्य.
सत्य, जिसमें होता है स्वाद नीम-करेले का.
सत्य, जो देता है पीड़ा तीव्र ह्रदय गति के धौकनी सा.
हमारी जाति ही ऐसी है
जो कहती है खरी बात.
हमारा एक शब्द होता है जन्मदाता
कई अर्थों का.
तभी तो 'बिहारी' बने 'गागर के सागर '
आप हमारे पाठक
करते हैं
हमारी पंक्तियों का विश्लेषण
अपने ढंग से
और ढाल लेते हैं अपनी परिस्थिति में.
कई बार जब हम याद दिलाते
किसी दुसरे की औकात
तब आप बजाते हैं तालियाँ
दुदुंभी की तरह,
और कई बार आपको होती है पीड़ा
असहनीय.
क्योंकि समझ लेते हैं आप उसे
अपना मान-मर्दन.
खैर,
इसमें नहीं है कोई दोष
आपका या हमारा
इसका दोषी है समय
जो गढ़ता है ऐसे वातावरण
और उस वातावरण के रचनाकार होते हैं
आप,
स्वयं.

6 टिप्‍पणियां:

  1. "सत्य, जिसमें होता है स्वाद नीम-करेले का.
    सत्य, जो देता है पीड़ा तीव्र ह्रदय गति के धौकनी सा
    ...
    क्योंकि समझ लेते हैं आप उसे
    अपना मान-मर्दन"

    बड़ी बात - शुभकामनाएं

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  2. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है, ऐसी आशा है कि पुष्प वाटिका के समान सोहित इस ब्लॉग वाटिका में आप अपनी रचनाओं के माध्यम से जन-मन के अन्तर्मन को छू लेगें, अगर हो सके तो राष्ट्रवादी और सामयिक विषयों पर आधारित इस ब्लॉग पर भी कभी दस्तक देवें...
    http://hindugatha.blogspot.com
    रामदास सोनी

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  3. name of t blog is amazingand your concern is great

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  4. बहुत सही लिखा है आपने| धन्यवाद|

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  5. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  6. very nice but Truth is truth .....good wishes rajendra kashayap bhopal reporter.blogspot.com

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