शब्द समर

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4.12.11

किसी को सताओ ना इस कदर

सताओ न किसी को इस कदर
कि 
उसके मुंह से 
आह रूपी आग निकलने लगे, 
आंतक करने लगे, 
पातंक भरने लगे। 
तुम्हारी जबरन यातनाओं का,
उसकी बेबस आत्माओं का,
एक ही परिरणाम निकलेगा
जब उसके दिल की आग से
हिमालय का बर्फ पिघलेगा।
जमाने से बेबस होकर वो
जो कदम उठायेगा
धरती डगमगाएगी,
आसमां भी कांप जायेगा,
इन्द्र का सिहांसन भी हिल जायेगा 
तो तू क्या चीज है
एक पल में मिट्टी में मिल जायेगा।
बचना ना मुमकिन होगा तुम्हारा,
चाहे गुफाओं में छुप जाओ,
पानी में डूब जाओ,
या परमपिता परमेश्वर की शरण में जाओ।
वह भी तुमको दुत्कारेंगे,
काल के फांस से मारेंगे,
गुफाओं और पानी में ,
तुम्हारी इस नादानी में,
उसके दिल का शोला भड़केगा
जब उसका सताया मन
पागल की तरह,
रस्ते-रस्ते, खस्ते-खस्ते 
हालत लिये,
तुम्हारे दरवाजे पर पहुंचेगा,
तुम्हारा गिरेबान पकड़कर खींचेगा
घसीटेगा
तुम्हें,
जिस तरह तुमने उसकी आत्मा घसीटा है,
सामने से प्यार देकर 
पीछे से उसको पीटा है,
वो सारे बदले लेगा तुमको  
लातों से, घूसों से,
बंदूकों से तलवारों से,
तरह-तरह के औजार से,
तुमको मार-मार कर,
रोयेंगे तुम्हारे घर वाले
तुम्हारे किस्मत पर,
इज्जत का तुम्हारे जनाजा उठायेगा,
‘विद्यार्थी’ तुम्हारी ये जिन्दगी,
फटेहाल कर जाएगा। 
रोना पड़ेगा तुम्हें जिन्दगी भर
सर पीट-पीट कर
तभी तो कहता हूं
अपने स्वार्थ के लिए 
"किसी को सताओ ना इस कदर"। 

तन्हा चाँद


















ये चाँद.
ये अँधेरी रात का चाँद.
ये अनगिनत तारों के बीच अकेला चाँद.
चमक रहा है खुद,
दे रहा है रोशनी दुनिया को
लेकिन
अपने आसपास लिए अँधेरा चाँद.
जबकि है ये पूरा अपने आप में,
फिर भी दिख रहा अधूरा चाँद.
चांदनी भी छोड़ इसे आ गई ज़मीन पर,
अब खड़ा इंतजार में ये तन्हा चाँद.
मत कर फिकर,
कर इंतज़ार,
चांदनी आये न आये,
क़यामत ज़रूर आएगी
जो तेरी और सिर्फ़ तेरी होगी,
उसीकी आगोश में समा जाना,
हो जाना रुख़सत
तब होगा
एहसास उसे
कि
उसकी अँधेरी दुनिया को रौशन करने वाला
केवल
तू ही था अकेला चाँद.