मुझसे नज़र तो मिलाओगे
पर जिगर कहाँ से लाओगे
जो दग़ा हमसे किया है
वो ख़बर कहाँ मिटाओगे
पीठ-पीछे जो रखा है मेरे
वो खंजर कहाँ छुपाओगे
छुप के जो दफ़नाया है
मेरी कबर कहाँ दबाओगे
दर्द चीखेगा सरे बज़्म मेरा
अपना हशर कहाँ ले जाओगे
शब-ए-ख़ात्मा होने को है
कहो वो सहर कहाँ बुझाओगे
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