शब्द समर

विशेषाधिकार

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8.10.21

रंग

सौर-किरण के सप्तपुत्र,

छिटकते ही,

हो जाते हैं विभक्त

अपने-अपने क्रम में।

किरणें वस्तुओं से टकराते ही,

दीप्त हो स्वयमेव ही,

हो जाते हैं दृष्टिगोचर।

वर्ण कभी नहीं करते भेद

सम्प्रदायों,

जातियों,

विचारों

प्रतीकों में।

वे समान रूप से

प्रकाशमान होते हैं,

सृष्टि के समस्त जीवों को।

वर्ण-भेद करते हैं

मनुष्य मात्र,

जिन्होंने बाँट रखा है,

ईश्वर भी अपने-अपने,

स्वार्थानुसार,

और पहना दिया है वस्त्र भी उन्हें,

अपने अभिरुचि के रंगों का।

कितना ही सुन्दर होता,

जब मनुष्य भी

सूर्य की ही भाँति,

इन्द्रधनुषी व्यवहार युक्त होता,

और समस्त चराचर पर डालता,

दृष्टि भी समान।


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