चल पड़ा था जीवन की तलाश में.
प्यास लगी.
संयोग से एक कुआँ दिखा.
पानी पीने चला आया,
बिना सोचे-समझे.
कुआँ गहरा है ये तो पता था,
किन्तु इतना गन्दा है, ये कभी मालूम न था.
खैर आ ही गया हूँ
तो गगरी भी डालूँगा,
पानी भी निकालूँगा,
चाहे हलाहल विष ही क्यों न हो
पर दो घूँट पियूँगा ज़रूर.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें