कवि को,
कविता की भाषा में ही
प्रतिउत्तर देना चाहिए।
हालाँकि
कोई भी कवि,
कविता की मूल भाषा को
कभी नहीं समझ पाता,
क्योंकि वह
अपने
कवि होने के भाव में
इतना डूब जाता है,
कि
दूसरों की कविताएँ उसे
ओछी और निम्न समझ आती हैं।
अतः
कविता की
भाषा से मिले उत्तर से
मूर्ख बन
वह
आजीवन बुद्धिजीवी होने के
अहंकार में डूबा रहता है।
इसलिए
कवियों को
कविता की भाषा में
ही प्रतिउत्तर देना चाहिए।
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