कभी-कभी लगता है
फूट पडूँ|
फूट पडूँ,
सुख में मक्के
के लावा जैसे,
दुःख में बंजर
भूमि
और
क्रोध में
ज्वालामुखी की तरह|
कभी-कभी लगता है
घूँट लूँ|
घूँट लूँ,
सुख को सफ़ेद
बादलों के जैसे,
दुःख को लहरों
और
क्रोध को बर्फ़
की तरह|
कभी-कभी लगता है
पीस दूँ
पीस दूँ
सुख को खदान के
पत्थरों जैसे,
दुःख को ईख
और
क्रोध को अन्न
की तरह|
ये सुख-दुःख और
क्रोध ही तो हैं,
जो भरमाए रहते
हैं हर समय|
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