चित्र-साभार-गूगल |
सो गया वह,
आँखों में जीते हुए एक सपना,
जो रेगिस्तान की तरह था चमकीला
किन्तु
नहीं ला सका मुस्कुराहट
उसके होंठों पर|
सो गया वह,
एक ऐसी गाँठ को सुलझाते हुए,
जो उसकी ज़िन्दगी से भी थी अधिक मजबूत,
और बन गई फन्दा छटक कर उसके हाथों से|
सो गया वह,
एक ऐसी दरार में
जो उसकी ख्वाहिशों से भी थी अधिक गहरी,
जिसमें समा गया वह
अपनी पत्नी और बेटी की उमंगों की लाश लेकर|
सो गया वह,
ऐसे समन्दर में
जहाँ
मछलियाँ ही थीं, मछलियों की दुश्मन,
जैसे आदमी है आदमी के ही खून का प्यासा|
सो गया वह,
बिना तकिया,
बिना बिस्तर
बिना कन्धा
बस पेट में बाँध के गमछा,
डरते हुए समाज से,
लड़ते हुए भूख से|
सो गया वह,
फँस कर असीम इच्छाओं के भँवरजाल
और न जगने वाली नींद के आगोश में
सो गया वह,
न आने वाले कभी होश में|
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