शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
चोरी पाए जाने पर दंडात्मक कारवाई की जाएगी|
अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

21.11.17

जो आग तेरे दिल में सुलगी

जो आग तेरे दिल में सुलगी,
उस आग को अब जल जाने दे
अरमानों की इस भट्ठी में,
एक चिंगारी पल जाने दे

तेरी हर चाहत की लकड़ी में,
ख्वाबों की लाशें सोई हैं
कर बन्द हवा को मुट्ठी में,
इसे बुझने का बल जाने दे
एक चिंगारी पल जाने दे

बे-मौत तेरे हर सपने को,
मरना ही लिखा है कुदरत ने
ले छीन खुदाया से अपनी,
तकदीर को अब खुल जाने दे
एक चिंगारी पल जाने दे

तमन्नाओं का हर एक धुआँ,
ढूँढेगा आसमाँ में ख़ुद को
तू खोल दिशाओं की राहें,
इसे अपने मन चल जाने दे
एक चिंगारी पल जाने दे

हर आँसू अपनी आँखों का,
जलता है बनकर तेल यहाँ
फानूस बन महफूज़ कर,
बन रूई उसे जल जाने दे.
एक चिंगारी पल जाने दे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें