शब्द समर

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12.7.14

राज के कपूत

बीते पाँच साल, हुए तुम मालामाल,
किया कोई ना ख़याल पड़े हम किस हाल में.
चले बनने मेरे दूत, करने कुर्सी मजबूत,
मेरे राज के कपूत, राज करोगे भोपाल में.
कि हम रहेंगे बेहाल, तेरी महकेगी थाल,
बढ़ाके मेरा जंजाल, माल काटोगे तुम माल में
सुनो 'विद्यार्थी' का जवाब, अब करेंगे हिसाब,
मत देंगे, पर नहीं तुम्हें किसी हाल में.

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