शब्द समर

विशेषाधिकार

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12.7.14

अनंत की यात्रा पर

मैं एक यात्रा पर हूँ.
जीवन रथ पर सवार 
चल पड़ा हूँ अपनी प्रियतमा
अनंत की ओर,
संवेदना सारथी और 
पीड़ा सहयात्री है.
मृत्यु मेरा मित्र,
श्मशान मेरी ससुराल है.

प्रेमिका मेरी प्रतीक्षा में है
किन्तु
पहले मैं मिलूँगा मित्र से.
मेरी प्रिया से तो वह स्वतः ही मिला देगा.
लेकर जाएगा मेरी बारात
उसके द्वार तक
बाजे-गाजे के साथ.

अग्नि से मेरा साक्षत्कार कराएगा
मेरा ब्याह रचाएगा
श्मशान में,
और मैं समा जाऊँगा
सदैव के लिए
अपनी प्रियंवदा के आलिंगन में.

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