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2.7.25

तुम स्त्री हो

तुम स्त्री हो,

चाहे  कवयित्री हो, अभिनेत्री हो

नृत्यांगना हो, वीरांगना हो,

सिद्ध हो, प्रसिद्ध हो,

अनाम हो, या सनाम हो

पर तुम स्त्री हो|

 

तुम अभी हो मात्र शैशव काल में

या कैशोर्य ही अवस्था है तुम्हारी,

चाहे प्रविष्ट हो चुकी यौवनांगन में,  

प्रौढ़ावस्था को जी रही हो,

या प्राप्त हुई पूर्ण जरावस्था को,

किन्तु लैंगिक रूप से तुम हो स्त्री ही|

 

चाहे तुम सृजित हो, तुम पूजित हो,

तुम सेवि हो, तुम देवि हो,

तुम माता हो, जगदाता हो,

तुम मित्र हो, या पवित्र हो

पर तुम स्त्री हो|

 

तुममें है कोमलता भले ही,

या भरी हुई हो ममता के सिन्धु से

तुम हो दाहक भले ही ज्वालामुखी की भाँति

या प्लावक तेजस्विनी तरंगिणी

किन्तु तुम स्त्री हो|

 

चाहे तुम तपस्विनी हो, ओजस्विनी हो,

तुम सबला हो, तुम कमला हो

तुम दिव्य हो, तुम भव्य हो

तुम क्षेम हो, या तुम प्रेम हो

परन्तु तुम स्त्री हो|

 

तुम स्त्री हो, इस बात को तुम जान लो|

तुम्हारा स्त्री होना,

खलता है उनको,

जिन्होंने नाद में डूबकर बदल ली है

रंग अपनी चमड़ी की|

 

इन शृगालों की दृष्टि में

तुम होती हो एक मृगा मात्र,

जिसे ये जम्बुक देखते हैं अपनी

कुटिल व तीक्ष्ण दृष्टि सहित-

लोलुप जीह्वा से,

और

चुभा देना चाहते हैं,

समस्त दन्तपंक्तियाँ तुम्हारी देह में,

चबा जाना चाहते हैं,

तुम्हारा तन, मन, अस्तित्व, कृतित्व, मान-मर्यादा सहित-

समस्त प्रतिष्ठा तुम्हारी|


परन्तु सुनों,

तुम स्त्री हो,

और तुम्हारा स्त्री होना ही द्योतक है

कि तुम हो क्षमतावान, शक्तिमान हो सामर्थ्यवान हो|

अपनी शक्ति से

दन्तहीन कर डालो,

उन समस्त अरण्यश्वानों को,

दृष्टिहीन कर दो,

वकभक्तों को|

जिह्वा निकाल

बना लो प्रत्यंचा समस्त गिरदानों की,

और हुँकार से

कर दो रहस्योद्घाटन

रंगे सियारों का|

कि तुम स्त्री हो,

और कर घोषणा समस्त ब्रह्माण्ड में

कि अनिच्छा से नहीं कर सकता स्पर्श कोई भी तुम्हें,

चाहे हो वह दानव, मानव या साक्षत देव ही,

और यदि किसी ने की धृष्टता

तो दुर्योधन की जंघा

अब भीम नहीं,

तुम स्वयं तोड़ोगी|



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