शब्द समर

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20.7.25

ए री सखी तोहें का मैं बताऊँ...?

ए री सखी तोहें का मैं बताऊँ?
कैसे तोहें निज पीर सुनाऊँ?
ए री सखी तोहें का मैं बताऊँ?

नैहर में थी मैं प्यारी चिरैया
सासुर में मोहे बँधी हथकड़िया
कैसे तोहें अपना दर्द दिखाऊँ?
ए री सखी तोहें का मैं बताऊँ?

मायरि की मैं प्राण पियारी
बाबुल की तो रानी सुकुमारी
सासुर का कहते मैं शरमाऊँ
ए री सखी तोहें का मैं बताऊँ?

ना रुचि भोजन ना रुचि जीवन
ना रुचि बोलन ना रुचि पहिरन
दूसर रुचि मैं समय बिताऊँ
ए री सखी तोहें का मैं बताऊँ?

गुणी भले हूँ पर नहीं कोई गिनती
निज अधिकार भी पाऊँ करि विनती
भले हूँ सबल पर अबल कहाऊँ
ए री सखी तोहें का मैं बताऊँ?

सुन्दर मुख पर रहूँ कर पर्दा
शक्ति समस्त लिये फिरें मर्दा
बोलन पर निज जान गवाऊँ
ए री सखी तोहें का मैं बताऊँ?

कभी बोलें सास कभी रे ननदिया
जिठानी लड़ें जैसे लड़े रे कंजरिया
छोटका देवर को मैं कैसे समझाऊँ?
ए री सखी तोहें का मैं बताऊँ?

गाँव समाज बना जैसे पिंजरा
नजर गड़ाए डरत मोर जियरा
कैसे के मैं निज लाज बचाऊँ?
ए री सखी तोहें का मैं बताऊँ?





2 टिप्‍पणियां:

  1. भावनात्मक अभिव्यक्ति

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  2. "शब्द जैसे नहीं, जीवन के अनुभव हैं — हर अंतरा एक वेदना की परत खोलता है। अद्भुत लेखनी!"

    रावेन्द्र अवस्थी

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