"बहुत अरसा बीत गया,
तुमसे बात नहीं हुई|
न मोहब्बत की हमने,
न गिले हुए,
न शिकवे किये|
ऐसा लगता है,
जैसे जी नहीं रहे हैं,
बस जी रहे हैं|"
मैंने कहा,
"मैं तुम्हें याद
हूँ,
तुम मेरे दिल में हो|
मैं जी रहा हूँ तन्हा,
तुम अपनी महफ़िल में हो,
मैं बतिया लेता हूँ
तन्हाई से,
और तुम आँसुओं से|
न तुम मुझसे जुदा हुई,
न मैं हुआ दूर तुमसे;
बस कुछ रस्में हैं
जिनकी बेड़ियों में
तुम बंधी हो,
और मैं भी जकड़ दिया गया
हूँ|
तुम अपने अश्क़ों का भेजो
ख़त मुझे,
और मैं भी भेजता हूँ
पैग़ाम तुम्हें
अपनी बेबसी का|
दोनों इसी में खो जाएँ,
जैसे भी जी रहे हैं
चलो,
सारा खारापन पी जाएँ|"
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