शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
चोरी पाए जाने पर दंडात्मक कारवाई की जाएगी|
अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

7.7.25

प्यार का खारापन

उसने कहा,
"बहुत अरसा बीत गया,
तुमसे बात नहीं हुई|
न मोहब्बत की हमने,
न गिले हुए,
न शिकवे किये|
ऐसा लगता है,
जैसे जी नहीं रहे हैं,
बस जी रहे हैं|"

मैंने कहा,
"मैं तुम्हें याद हूँ,
तुम मेरे दिल में हो|
मैं जी रहा हूँ तन्हा,
तुम अपनी महफ़िल में हो,
मैं बतिया लेता हूँ तन्हाई से,
और तुम आँसुओं से|
न तुम मुझसे जुदा हुई,
न मैं हुआ दूर तुमसे;
बस कुछ रस्में हैं
जिनकी बेड़ियों में
तुम बंधी हो,
और मैं भी जकड़ दिया गया हूँ|

तुम अपने अश्क़ों का भेजो ख़त मुझे,
और मैं भी भेजता हूँ पैग़ाम तुम्हें
अपनी बेबसी का|
दोनों इसी में खो जाएँ,
जैसे भी जी रहे हैं
चलो,
सारा खारापन पी जाएँ
|"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें