चित्र-प्रतीकात्मक, साभार-गूगल |
मेरा परिचय?
वह तो बस
इतना ही है साहब
कि
मैं
बीनता हूँ,
सड़कों, या किनारे फेंकी हुई पन्नियों को|
उठाता हूँ,
तुम्हारे द्वारा खाली की हुई बोतलों को|
उतारता हूँ,
मरे जानवरों की खाल|
करता हूँ सफाई,
उन नालियों की, जिसमें गू-मूत करने में,
नहीं होती तुम्हें तनीक भी हिचक|
खाते हो तुम चुन-चुनकर
बड़े ही चाव से,
जिस भोज्य पदार्थ को,
पश्चात् पाचन के,
निकाल देते हो उसे
देकर नाम मैला का,
फिर उसी से होती है, घिन तुम्हें,
न ही फटकना चाहते,
तुम उसके ईर्द-गिर्द भी|
तुम उसके ईर्द-गिर्द भी|
रोग और मृत्यु से भरे
कालरूपी मल-मूत्र से
मुक्ति दिलाने का मैं लेता हूँ जिम्मा|
बदले इसके देते हो तुम मुझे,
घृणा, तिरस्कार, दुत्कार, बलात्कार
और बहिष्कार अपने समाज से|
लगा देते हो धब्बा
मुझपर अछूत होने का|
ऐसा नहीं कि
नहीं रहता मैं सफाई में,
किन्तु टट्टी उठाने वाला मैं
कितना भी कोशिश कर लूँ,
किन्तु घोषित कर देते हो तुम मुझे टट्टी जैसा ही,
हमेशा के लिए|
बात ये भी नहीं कि
अक्षरों से है मेरी शत्रुता
किन्तु
जिस समय ही पलटता हूँ पन्ना,
उसी समय,
पेट की अंतड़ियाँ लगती हैं मरोड़ने,
छाने लगता है अँधेरा आखों के सामने,
चकराने लगता है सर,
क्योंकि किसी ने सत्य ही कहा है,
“भूखे भजन न होय गोपाला|”
इसलिए
किताबों को रख,
मैं पुनः उठा लेता हूँ,
अपने मटमैले वस्त्रों से लिपटे शरीर को,
और निकल पड़ता हूँ,
पेट का अँधेरा मिटाने,
और जिंदगी का अँधेरा बढ़ाने|
मैं पृथ्वी बन
लगाने लगता हूँ चक्कर
अपने कूड़ा रुपी सूर्य का,
और बन जाता हूँ ‘कणाद’|
Hriday ko chhune Vali kavita hai shabdo ke madhyam se jo ktakcha kiya hai vo bahut hi mermsparsi hai
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