क्या आप करेंगे
पसंद
वह जीवन,
जिसे जीते हैं,
कथित
आदिवासी, बंजारे, दलित, या
निम्न वर्गीय लोग?
यदि हाँ,
तो स्वागत है
आपका, हमारे बाहुपाश में,
और यदि नहीं,
तो किसने दिया
आपको ये हक़
कि आप बलात
बदलें
हमारी जीवन शैली,
जिसे हम जी रहे
हैं सदियों से,
जो बसी है हमारी
हर साँस में?
कहीं आप आक्रमण
तो नहीं कर रहे,
सभ्यता और विकास
के नाम पर,
हमारी
स्वतंत्रता पर?
कहीं आप
अतिक्रमण तो नहीं कर रहे हैं,
हमारे
जल-वन-भूमि पर?
कहीं सूट-बूट और
चिकने चहरे के नाम पर,
आप जला तो नहीं
रहे हमारे घर-झोपड़े?
यदि आपकी यही है
कोशिश,
तो सावधान
अर्जुन!
एकलव्य का मात्र
अँगूठा ही छीना है
तुम्हारे गुरु
ने,
उसका हुनर नहीं।
हमारे सर्वनाश
से पूर्व,
तुम भी नहीं
रहोगे,
देखने के लिए
जीवित,
सभ्यता के नाम
पर विध्वंश करते,
इस दुनिया को।
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