शब्द समर

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9.1.17

मात्र एक घन्टे की

होती है मुलाक़ात मात्र एक घन्टे की,
रह गई है मेरी बात मात्र एक घन्टे की
देखकर आश्चर्य होता है,
क्या बची मेरी औक़ात मात्र एक घन्टे की?

जिन्होंने दी शाहदत, मुझे चूमने को आकाश,
क्या उनकी भी विसात मात्र एक घन्टे की?

आते हो मेरे पास, अपना वक्त  निकालकर,
क्या लाते हो अपनी बारात मात्र एक घन्टे की?  

करते हो बातें बड़ी-बड़ी, तुम देश के लिए,
क्या होती है सारी बात मात्र एक घन्टे की?

किये जो तुमने कार्य, वो आधे-अधूरे हैं,
क्या दे रहे हो सौगात मात्र एक घन्टे की?

मुझसे अभी अधिक प्रिय हैं तुम्हें, बेसन के लड्डू,
क्या तीन रंगों की है विसात मात्र एक घन्टे की?

‘विद्यार्थी’ मैं भारत की आज़ादी, चाहती हूँ कुछ कहना,
क्या सुनोगे मेरी बात मात्र एक घन्टे की?

तो सुनों! अगर चेते नहीं अभी,
तो क्या बचेगी तुम्हारी भी औक़ात, मात्र एक घन्टे की?

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