शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
चोरी पाए जाने पर दंडात्मक कारवाई की जाएगी|
अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

22.11.13

ख़ामोश सुबह


सुबह बड़ी ख़ामोश है और रूहों में सरगोशी है
या क़यामत आने वाली है, या होना है फ़ना मुझको

शबनमी चमक शमशीरी लगती हैं,
परिंदों की टोली में कोई लगता है सरगना मुझको

तेरे क़दमों की आहट से अब दिल को बेचैनी है
चुभी सुई के दर्द सा लगता है कई गुना मुझको

धड़कने घुट रही हैं, अपनी ही चीख़ो में बार-बार
शायद तेरे ख़यालों ने कर दिया ज़िना मुझको

साजिशें तेरे जज़्बातों के दीदार हो रहे हैं अब
मुकम्मल प्यार के शायद तूने नहीं चुना मुझको

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें