सुबह बड़ी ख़ामोश है और रूहों में सरगोशी है
या क़यामत आने
वाली है, या होना है फ़ना मुझको
शबनमी चमक शमशीरी
लगती हैं,
परिंदों की टोली
में कोई लगता है सरगना मुझको
तेरे क़दमों की
आहट से अब दिल को बेचैनी है
चुभी सुई के दर्द
सा लगता है कई गुना मुझको
धड़कने घुट रही
हैं, अपनी ही चीख़ो में बार-बार
शायद तेरे ख़यालों
ने कर दिया ज़िना मुझको
साजिशें तेरे
जज़्बातों के दीदार हो रहे हैं अब
मुकम्मल प्यार के
शायद तूने नहीं चुना मुझको
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