शब्द समर

विशेषाधिकार

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21.11.13

ये दाग़दार शहर

ये शहर,
ये दाग़दार शहर
ये सहर,
ये दाग़दार सहर,
शहर भी रुलाया, 
सहर भी रुलाया, 
पोछने अश्क़ यहाँ
कोई न आया, 
शहर भी पराया,
सहर भी पराया .

जैसी थी शब, 
वैसे थे सब, 
न शहर में बसेरा,
न सहर में बसेरा, 

शब भी अँधेरी
सहर भी अँधेरा
सब में अँधेरा, 
शहर में अँधेरा, 

न शब आज मेरी
न सब आज मेरे
न शहर आज मेरा,
न सहर आज मेरी.

जा रही हूँ
तुम्हारे लिए
ये शब छोड़कर,
ये सब छोड़कर, 
ये शहर छोड़कर,
ये सहर छोड़कर.

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