तब से लेकर आज तलक
बीते कितने नये बरस,
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.
कालचक्र का गतिमय काँटा
टिक-टिक चलता रहता है
आदि जहाँ से होता उसका
अन्त वहीं वह करता है.
नहीं एक क्षण स्थिर होता
नहीं फिजां का लेता रस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.
रवि से लेकर वार सनीचर
अगणित सात दिवस बीते
चैत्र से लेकर फाल्गुन तक
गणना में माह क्षण-क्षण रीते
मुल्ला, पंडित, पादरियों की
नहीं हुई कभी खाली मस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस
बुध सामान है होली मेरी
रवि सामान दिवाली है
यथा भौम के ईद मनाता
जस शनि क्रिसमस खाली है
जस मैं हर दिवस मनाता
त्यौहार मनाता बिलकुल तस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.
हो यदि शुभ रवि-सोम मंगल
बुध-गुरु शुक्र यथावत हों
शनि शान्ति रहे बिन क्लेश-कलह
अर्थ जब मन संयत हो.
लिए व्यथा यदि आया भी
किस अर्थ का होगा नया बरस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.
बीते कितने नये बरस,
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.
कालचक्र का गतिमय काँटा
टिक-टिक चलता रहता है
आदि जहाँ से होता उसका
अन्त वहीं वह करता है.
नहीं एक क्षण स्थिर होता
नहीं फिजां का लेता रस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.
रवि से लेकर वार सनीचर
अगणित सात दिवस बीते
चैत्र से लेकर फाल्गुन तक
गणना में माह क्षण-क्षण रीते
मुल्ला, पंडित, पादरियों की
नहीं हुई कभी खाली मस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस
बुध सामान है होली मेरी
रवि सामान दिवाली है
यथा भौम के ईद मनाता
जस शनि क्रिसमस खाली है
जस मैं हर दिवस मनाता
त्यौहार मनाता बिलकुल तस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.
हो यदि शुभ रवि-सोम मंगल
बुध-गुरु शुक्र यथावत हों
शनि शान्ति रहे बिन क्लेश-कलह
अर्थ जब मन संयत हो.
लिए व्यथा यदि आया भी
किस अर्थ का होगा नया बरस
कितने जी कर गुज़र गये
कितने जीने को रहे तरस.
अति सुंदर रचना ।
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