आज फिर रविवार है
आज फिर होगी वह अपने
प्रेमी का आलिंगन.
आज फिर मैं
निहार रहा हूँ अपलक
फूलों की कलियों को
जैसे बिसूरता था उसे
जब
वह मेरे गोद में रखकर अपना सर
सोया करती थी.
यह सूरज तब भी साक्षी था
जब मुझमें थी पूरी हरियाली
उसके केशों की,
आज भी है यही प्रमाण,
जब बचा हूँ मात्र एक ठूंठ
उसके चले जाने से.
तब यह सूरज इतना तीखा नहीं था
पर आज इसकी किरणें
अर्जुन के तीर की तरह
भीष्म को छलनी कर रही हैं.
अर्जुन के तीर की तरह
भीष्म को छलनी कर रही हैं.
बढ़िया लेखन... बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर.... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंटीस उठी ।
जवाब देंहटाएं