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30.11.10

जो ग़लत है वो ग़लत है...

मैं जाति का कवि. अभी दो-चार दिन पूर्व कुछ घटनाओं को देखकर एक कविता लिख  डाली. लिखा ही नहीं वरन वर्तमान संचार साधनों का उपयोग करते हुए अपने पाठकों को मेल पर भेज भी दिया. इस पर त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए मेरे एक शुभचिंतक ने मुझे सदबुद्धि का पाठ पढ़ा डाला. ज़रा उनके शब्द भी पढ़ लें, "आप ग़लत को ग़लत नहीं कह पाते, भगवान आपको सदबुद्धि दे." इस बात से मै आहत तो नहीं हुआ किन्तु अपने आप को लेकर चिंतित अवश्य हुआ. आजकल लोग अपने विरोधियों के लिए करते हैं, मैनें  स्वयं  लिए ही सदबुद्धि यज्ञ कर डाली. यज्ञ से प्रसन्न हो मेरी आराध्य देवी माँ सरस्वती एवं कर्मयोगी भगवान  लीला बिहारी श्री कृष्ण प्रकट हो गये.
मै उनसे बोला, मैंने मारपीट, लड़ाई-झगड़ा, दंगा-फसाद जैसे अनैतिक कार्य छोड़ दिए हैं इसलिए लोग मुझे कोस रहे हैं. लोग कहते हैं की मै बुजदिल हूँ, डरपोक हूँ, ग़लत को ग़लत नहीं कह पाता. मुझे संदेह है कही मेरा पुरुषत्व क्षीण तो नहीं हो गया? यदि मारपीट, लड़ाई-झगड़ा दंगा-फसाद जैसे अनैतिक और निर्दयतापूर्ण कार्य ही ग़लत को ग़लत कहने और निर्णय का उचित तरीका है तो मेरा ह्रदय परिवर्तन क्यों?
इस पर दोनों के चहरे पर मुस्कान दौड़ गई. फिर श्री कृष्ण ने कहा- तुम्हारा मात्र ह्रदय परिवर्तन किया गया है, न कि तुम्हारी शक्तियां छीनी गई हैं. तुम स्वतः सोचो कि आज हर एक व्यक्ति आपस में ही दुश्मन हो गया है. अपने ही लोगों से छल-कपट करने लगे हैं. अपने ही परिजन कब अपने निकतम के लिए गड्ढा खोद दें मुझे भी पाता नहीं चलता. लोग मिलते तो हैं प्रसन्नता से किन्तु इतने शातिर होते हैं कि अगले ही पल एक-दुसरे के खिलाफ ऐसे तलवार उठा लेते हैं जैसे जन्म-जन्मान्तर के धुर विरोधी हों. लोग हमें भूलते जा रहे हैं. अगर तुम भी इन कुटिल और अनाचारियों के क्रम में खड़े हो गये तो हमारा अस्तित्व कौन बचाएगा?
फिर माँ सरस्वती बोलीं- तुम्हारी शारीरिक शक्ति अभी भी यथावत हैं, बल्कि हमने तो तुम्हे एक अतिरिक्त शक्ति दी है, तुम्हारी कलम. मारपीट तो लोग भूल जायेंगे किन्तु कलम कि मार कभी नहीं भूल पाएंगे. तुम किसी बात कि प्रमाणिकता बोल के नहीं बल्कि लिख कर करोगे. क्या भूल गये 'दिनकर ' की बात कि "कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली, दिल ही नहीं, दिमागों में भी आग लगाने वाली." तुम अपने इस लेखनी से अनैतिक को अनैतिक कह कर अपने बुद्धिमत्ता का परिचय दोगे. ये मान लो कि अब तुम्हारा काम बोलना नहीं, अब तुम्हारा काम लिखना है. लोग तुम्हे डरपोक कह कर उकसाते हैं ताकि तुम फिर पथभ्रष्ट हो जाओ. इतना कह कर वे अंतर्ध्यान हो गये.
मैं धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ एवं आभारी हूँ उस शुभचिंतक का  जिन्होंने मेरे आराध्यों से मेरा साक्षात्कार कराया. अगर दो लोग आपस में मिलकर सदभाव से कोई कार्य नहीं करते, दूसरों से द्वेष करते हैं और हर बात पर झगड़ते हैं, तो ये ग़लत है. और जो ग़लत है वो ग़लत है. ग़लत है, ग़लत है और ग़लत है. मै ग़लत को ग़लत कहता हूँ किन्तु गला फाड़ के चिल्लाकर नहीं बल्कि अपने कलम से क्योकि मै राजनीतिज्ञ नहीं एक कवि हूँ.

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