शब्द समर

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11.11.10

बारह बरिस की तरुणाई

बारह बरिस की तरुणाई आइ कपार पै नाचन लगी है,
आँखन में एक सुन्दर कन्या आइ चिकोटि काटन लगी है,
करवट लेइ-लेइ रात बितायउँ, कैसन नींद उचाटन लगी है,
बारह बरिस की तरुणाई आइ कपार पै नाचन लगी है,

रोंकी न पायउँ पैरन का इ अपनेन मन से डोलि रहे हैं,
गुटखा-पकरा स्वादिष्ट लागइ जीवन मा विष घोलि रहे हैं,
बड़ेन क बात नीक न लागइ सोची थे ई का बोलि रहे हैं,
रोकी न पायउँ पैरन का इ अपनेन मन से डोलि रहे हैं.

दउडऩ लागें इहाँ से उहाँ मन कैसन होइ गये हैं चंचल,
गोरी दु़पट्टा देखि लहराई, नीक न लागइ माता के आँचल,
बाप के बोली गोली अस बाजइ, गुस्सा से घर मा होइ जाथी हलचल,
दउडऩ लागें इहाँ से उहाँ मन कैसन होइ गये हैं चंचल.


घर के सगलउ टाठी-खोरिया अउ बाप के पैसा उड़ावन लगे हैं,
संझा ·की बेला चकला मा जाइके रोज नई नारी नचावन लगे हैं,
समाज के कउनउ फिकिर न ·किन्हेन अपनेन काज रचावन लगे हैं.
घर के सगलउ टाठी-खोरिया अउ बाप के पैसा उड़ावन लगे हैं.

अपने पड़ोसी भैया का देखि ब्याह के फिकिर सतावन लगी है,
प्यारी सी गोरी सी सपने मा आइके 'विद्यार्थी'· के सेज सजावन लगी है,
एक झलक देखाइ के हमका उ पाछे अपने दउड़ावन लगी है,
अपने पड़ोसी भैया का देखि ब्याह के फिकिर सतावन लगी है.

पोथी-किताब मने न भावइ पिक्चर सनीमा लागई सुहावन,
मन्दिर, स्कूल के डेहरी गन्धाथी कोठा के कमरा लागथइ पावन,
दुर्गा अउ काली के नाम न सोहइ श्री देवी का लागन मनावन,
पोथी-किताब मने न भावइ पिक्चर सनीमा लागइ सुहावन.

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