शब्द समर

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2.11.10

वक्त की आवाज़

मैं नहीं रुकता एक पल
विद्युत् सी है गति मेरी
चलना है तो चल मेरे संग
ओ मनुज क्यों करता देरी?
मैं नहीं रुकता एक पल

व्यर्थ मत गवां मुझे
उपयोग उचित कर मुझे
कल को क्या करना है
अभी सोचना है तुझे
चलता रहता मैं सदा
जैसे बहता नदी का जल
मैं नहीं रुकता एक पल

मस्तिष्क को बड़ा कर
ख़ुद को अपने पैरों पर खड़ा कर
पकड़ ले मुझे ज़ल्दी से
और मुझ संग चला कर
थोडा भी जो छूटा संग मेरा
तो हो जाऊंगा बीता कल
मैं नहीं रुकता एक पल

जो तू मुझको खोएगा
तो बहुत ही रोयेगा
फिर न मिलूँगा तुझको
कितना भी संजोयेगा
सुन ले मुझ 'वक्त की आवाज़'
ओ 'विद्यार्थी' के मस्तिष्क कल
मैं नहीं रुकता एक पल

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचना ......वक्त की पुकार हमे सुननी ही होगी, समय की कीमत जो नहीं समझता उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है ।

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