तुम स्त्री हो,
चाहे कवयित्री हो,
अभिनेत्री हो,
नृत्यांगना हो,
वीरांगना हो,
सिद्ध हो,
प्रसिद्ध हो,
अनाम हो,
या सनाम हो,
परन्तु स्त्री ही;
तुम्हारा नाम है|
तुम हो शैशव काल में,
तरुणाई की चाल में,
यौवन तुम्हारे भाल में,
या पूर्ण वार्धक्य हो खाल में,
किन्तु लैंगिक रूप से;
स्त्री ही हो तुम त्रिकाल में|
चाहे तुम सृजित हो, तुम पूजित हो,
तुम सेवि हो, तुम देवि हो,
तुम माता हो, जगदाता हो,
तुम मित्र हो, या पवित्र हो,
परन्तु स्त्रीत्व ही;
तुम्हारा चरित्र है|
मन में तुम्हारे ममता है,
हृदय में कोमलता है,
सबके प्रति समता है,
वंश, ध्वंस की क्षमता है,
परन्तु स्त्रीत्व ही;
तुममें रमता है|
चाहे तुम सबला हो, तुम चपला हो,
तुम दिव्य हो, तुम भव्य हो,
तुम क्षेम हो, तुम प्रेम हो,
या तपस्विनी हो, या ओजस्विनी हो,
परन्तु स्त्रीत्व ही;
तुम्हारी दैनन्दिनी है|
तुम भक्ति हो, तुम शक्ति हो,
तुम श्रेय हो, तुम ज्ञेय हो,
तुम मान हो, सम्मान हो,
तुम गीत हो, तुम जीत हो,
परन्तु स्त्रीत्व ही:
तुम्हारी रीत है|
तुम स्त्री हो,
तुम्हारे स्त्री होने को,
और अपने आप से
निम्न होने, अल्प होने जैसे
विषाक्त भावों का आभास
करते व कराते हैं, वे,
जिन्होंने नाद में डूबकर बदल ली है
रंग अपनी चमड़ी की,
जो स्वयं बहिर्रूप से,
प्रदर्शित होते हैं शुभचिन्तक तुम्हारे,
परन्तु खाल के भीतर
इनकी धमनियों में बहता है,
कलुषित रक्त
प्रति तुम्हारी देह, तुम्हारी सुन्दरता,
तुम्हारे भावों-विचारों की अभिव्यक्ति
के|
इन शृगालों की दृष्टि में
तुम होती हो एक मृगा मात्र,
जिसे ये जम्बुक देखते हैं अपनी
कुटिल व तीक्ष्ण दृष्टि सहित-
लोलुप जीह्वा से,
और
चुभा देना चाहते हैं,
समस्त दन्तपंक्तियाँ तुम्हारी देह में,
चबा जाना चाहते हैं,
तुम्हारा तन, मन, अस्तित्व, कृतित्व, सतीत्व, मान-मर्यादा सहित-
समस्त प्रतिष्ठा तुम्हारी|
परन्तु सुनों,
तुम स्त्री हो,
और तुम्हारा स्त्री होना ही द्योतक है
कि तुम हो क्षमतावान, शक्तिमान हो सामर्थ्यवान हो|
अपनी मुष्टि-प्रहार से
दन्तहीन कर डालो,
उन समस्त अरण्यश्वानों को,
रज-धूल से दृष्टिहीन कर दो,
वकभक्तों को|
जिह्वा निकाल
बना लो प्रत्यंचा समस्त गिरदानों की,
और सिंघणी सम हुँकार से
कर दो रहस्योद्घाटन
रंगे सियारों का|
कर दो घोषणा समस्त ब्रह्माण्ड में
कि तुम स्त्री हो,
और
अनिच्छा से नहीं कर सकता स्पर्श कोई भी तुम्हें,
चाहे हो वह दानव, मानव या साक्षत देव ही,
और यदि किसी ने की धृष्टता
तो दुर्योधन की जंघा
अब भीम नहीं,
तुम स्वयं तोड़ोगी|